१८८ महारावल भीमसिंह

 १८८ महारावल भीमसिंह 

महारावल भीमसिंह विकर्मी संवत 1634 को राजसिंहासन पर विराजमान हुए इनके 9 रनिया थी | १,बीकानेर के राजा रायसिंह की पुत्री फुलकंवर २,मेड़ता के ठाकुर पातळ जी की पुत्री लाल्कंवर सती हुयी | ३ सोढा राजसिंह की पुत्री ह्जुकंवर सती हुयी ४,गढ़ जसोल के मेह्चा राव कल्याणमल की पुत्री राजकंवर ५.चौहान राना प्रथ्वीराज की पुत्री विलेकंवर सती हुयी | महारावल भीमसिंह ऐक प्रभावशाली सुयोग्य राजा थे | इन्होने अकबर को अपनी बुद्धिमता से प्रसन्न कर लिया था | इन्होने हि नव रोजे की प्रथा बंद करवाई थी | जिसके उपलक्ष में बीकानेर नरेश छोटे भाई प्रथ्विराज ने यह कहा |
दूजा राज साहरे कर मेले दारी
भाटी भीम छुड़ाय दी ,नो रोजे नारी ||

महारावल भीमसिंह ने प्रचुर मात्र में धन इकट्ठा करके आपने विध्वस्त दुर्ग के जीर्णोधार में 50 लाख रूपये लगाये | इनके नाथू नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ | नाथू की माता बीकानेर की पुत्री थी | नाथू की सात वर्ष की आयु में महारावल का स्वर्गवास हो गया | महारावल के छोटे भाई कल्याण दास ने नाथू को विष दिलवा दिया | नाथू को लेकर फलोदी जाने पर नाथू का देहांत हो गया | तब महारानी बिकी जी अपना बंदोबस्त फलोदी के गढ़ में करके थाना बिठाकर बीकानेर चली गयी | तब फलोदी कुछ समय बीकानेर के पास रही बाद में जोधपुर के राजा के अधिकार कर लिया | महारावल का स्वर्गवास विक्रमी संवत 1670 माघ वदी २ को हुआ |

 कुंडलिया 
रावलजी श्री भीमसिंह बड़े गरीब नवाज
सोले सो चौतीस रा माह सुदी चौथ विराज
महा सो चौथ को विराज गढ़ की मरमत्त कीनी
नोरा जाती नित नो रोजे सोई न दीनी '
बली अकबर साह आन वरताई सावल
नव रोजे की रीत छुड़ायी भाटी रावल



                                                     
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