191 महारावल रामचंद्र (भाटी 52 )1647 ई और उनका देरावर में निवास

 :: 191 महारावल रामचंद्र (भाटी 52 )१६४७ ई ::

महारावल रामचंद्र जैसलमेर के राजसिंहासन पर संवत 1706 वि. मिगसर वदी बीज को विराजे | इनके पांच रानिया थी | १.भोजराज सोढा की पुत्री चाँदकंवर २ ठा.देवीदास पातावत की पुत्री लाछकंवर | इनके पुत्र १.सुन्दरदास २ दलसहाय ३ चतुर्भुज ४ रायसिंह पुत्री सामुकंवर बीकानेर परणायी | महारावल रामचंद्र जी अत्यंत हि उदंड थे | इसलिए सामंत ग़ण व् प्रजा ने रामचंद्र जी को पदच्युत करके महारावल मालदेवजी के पुत्र खेतसिंह के पुत्र दयालदास के पुत्र सबलसिंह को राजसिंहासन पर बिठा दिया | महारावल रामचंद्र भवानीदास माल्देवोत के पुत्र थे | मनोहरदास के गोद आये थे |

:: रामचंद्र का देरावर में निवास ::

पदच्युत रामचंद्र नवीन महारावल सबलसिंह के सामंत बनकर देरावर में रहने लगे उन्होंने आस -पास का समस्त प्रदेश जोहीयों से छीनकर अपने अधीन कर लिया | परन्तु इनके पर्पोत्र रायसिंह से शिकारपुर के दाउद फतेहखान ने देरावर छीनकर अपने अधीन कर ली उस समय रामचंद्र जी के पास देरावर ,मारोट ,मुमनवाहन वीजनोट में परगने थे | रावल रामचंद्र ने देरावर को अपनी राजधानी बनाई | रावल रामचंद्र महान व्यक्ति थे | जिसने अपने चचेरे भाई को चुपचाप राज्य सोंप दिया | रावल रामचंद्र और इनके वंशजों ने सन 1706 से 1763 ई.तक देरावर पर राज्य किया | रामचंद्र के बाद देरावर के शासक माधोसिंह ,किशनसिंह और रायसिंह हुए | रावल रायसिंह सन 1741 ई.में देरावर के महारावल बने और 1763 ई .में उन्हें अंतिम बार देरावर त्यागना पड़ा कंधार के शासकों ने दाउद खां अफगान को खदेड़कर निकाल दिया | उसने भारत में आकर शिकारपुर क्षेत्र में आकर सरण ली अपनी योग्यता और चतुराई से उसने शिकार पुर पर अधिकार कर लिया | उसके पुत्रों और पोत्रों कच्छ के जंगली प्रदेश पर अपना अधिकार कर लिया | सन 1726 ई .में मीर खां खोरानी ने देरावर के किले पर अधिकार कर लिया | राजकुमार रायसिंह ने मुल्तान में मुगलों के सूबेदार से सहायता प्राप्त करके देरावर को खोरानियों से मुक्त करवाकर अपने अधिकार में लिया | देरावर की राजकुमारिया फतेह्कंवर और सुल्तानदे का विवाह बीकानेर के महाराजा सुजानसिंह के साथ हुआ | सन 1736 ई.में महाराजा जोरावरसिंह का विवाह भी देरावर के सूरसिंह की पुत्री अखेकंवर से हुआ | रावल जयसिंह ने 1741 -1763 में दाउद खां के पुत्रों मुबारक खां और सादक मोहमद को अपने राज्य का जमादार नियुक्त किये | और इन्हें राज्य में शांति स्थापित करने का जिम्मा सोंपा | सं 1763 ई .में रावल रायसिंह तीर्थ करने देरावर से बहार चले गए | उनकी अनूपस्थ्ती में दाउद पुत्रों ने किले पर अधिकार कर लिया | तब रायसिंह बीकानेर के राजा गजसिंह से सहायता लेने गए | किन्तु उन्होंने कोई सहायता नहीं दी | रावल रायसिंह कोलायत में हि रहने लगे उनका देहांत कोलायत में 1771 में हुआ | इनके बाद रुघनाथसिंह रावल बने सं 1771 ई . में जालमसिंह गड़ीयाला के राव बने | सन 1784 ई .में महाराजा गजसिंह ने रावल रायसिंह के प्रपोत्र रावल जालमसिंह को गड़ीयाला के राव की पदवी दी | इन्होने देरावर के राम्चंद्रोंतो ( भाटियों को ) मगरा क्षेत्र के करनोत व् धनराजोत खीया भाटियों के दस गाँव गड़ीयाला की जागीरी में दीये | यह गाँव १.सूरजड़ा २.नाथूसर ३.बाकलसर ४.मियाकोट ५.खजवाना६ चिमाणा ७.नाभासर ८.हाडला 9.जैमला १०.गड़ीवाला | सन 1831 ई.जालमसिंह की म्रत्यु तक भावलपुर राज्य उन्हें राशन व् खर्चा भेजता रहा | उसके बाद रावल भोमसिंह के समय बंद कर दियां | जोधपुर के शासक भीमसिंह के ऐक राणी देरावरी थी उनके धोकलसिंह नामक पुत्र हुआ | रावल भोमसिंह के बाद भभूतसिंह के बाद इनके पुत्र नाथुसिंह रावल बने | नाथुसिंह निसंतान थे | तब इन्होने आपने भाई बुलीदानसिंह को गोद लिया | बुलीदानसिंह के भी पुत्र  नहीं था | तब इन्होने रावल भोमसिंह के प्रपोत्र और गजसिंह के पुत्र दीपसिंह को गोद लिया इनके पुत्र फतेहसिंह रावल बने | फतेहसिंह के पुत्र नहीं होने से इन्होने अपने भाई उदयसिंह को गोद लिया | दुर्भाग्य से उदयसिंह के भी पुत्र नहीं हुआ | उदयसिंह के गोद भूरसिंह पुत्र अभयसिंह आये |


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