::183 महारावल जेतसीह (भाटी 44 ) 1492 ई.::
महारावल जेतसीह जी जैसलमेर के सिंहासन पर विकर्मी संवत 1549 को विराजमान हुए | इनके 11 रानिया थी | १ बाड़मेर के रावत रता जी की पुत्री लाछन दे बाड़मेरी २ सोढा बेरसी जी की पुत्री सिणगार कँवर ३ राठोर रावत भवानी दास की पुत्री सूरज कँवर ४ गढ़ नीम्बड़ी झाला राज भाणजी की पुत्री जसकँवर ५ गढ़ जसपुर के चावड़ा राव सांवत जी की पुत्री राजकँवर ६ गढ़ माँडल के हाडा राव कानड़ देव की पुत्री मानकंवर ७ मालदेव जी देवड़ा सिरोही की पुत्री परनायी| इनके पुत्र १ लूणकरण २ करमसी ३ नरसिंगदास ४ मेहरावण ५ मंडलीक ६ मेहराज ७ बेरीसाल ८ प्रतापसिंह 9 भानिदास थे | पांच बेटों का जेतसिंहहोत भाटी हुए महारावल जेतसीह शांति पिर्य राजा थे | उनकी इस प्रकृति से लाभ उठाकर भाटी सामंत सोढ़े व् बाड़मेरा आदी ने राज्य में अनेक उपद्रव करने लगे | और ऐक दिन उन्होंने राजकुमार के घोड़े को चुरा लिया परन्तु महारावल ने उन्हें कुछ दंड नहीं दिया इस प्रकार अशांति से उनका द्वतीय पुत्र लूणकरण क्रुद्ध होकर उपद्रवियों का दमन करने हेतु कंधार के अधिपति की सहयता लेने के लिए अफगानिस्थान चला गया | उनकी अनुपस्थति में बीकानेर की सेना आक्रमण करती हुयी खास जैसलमेर के नजदीक बासनपीर तक आ पहुंची तब महारावल ने सामना किया और राठौर की सेना मैदान छोड़कर वापिस बीकानेर चली गयी इन्होने ऐक भारी बांध बनवाना शुरू किया था | परन्तु वो समाप्त होने न पाया था | महारावल का देहावसान हो गया | महारावल जेतसीह ने जेरात गाँव बसाया |
महारावल जेतसिंह के पांच पुत्रों के वंशज जेतसिंहोत भाटी कहलाये | उनके वंशजों का गाँव जैरात जैसलमेर जिले में हे |
महारावल करमसी जैसलमेर के राजसिंहासन पर विक्रमी संवत 1585 कार्तिक वदी दसम को राजसिंहासन पर विराजे वे ऐक पक्ष भी राज्य नहीं कर पाए थे की उनका लघु भ्राता लूणकरण खान्धारियों के 800 सेनिक लेकर उनकी सहायता से करमसी को पदच्युत करके स्वयं राजगादी पर बिराजे |
महारावल जेतसीह जी जैसलमेर के सिंहासन पर विकर्मी संवत 1549 को विराजमान हुए | इनके 11 रानिया थी | १ बाड़मेर के रावत रता जी की पुत्री लाछन दे बाड़मेरी २ सोढा बेरसी जी की पुत्री सिणगार कँवर ३ राठोर रावत भवानी दास की पुत्री सूरज कँवर ४ गढ़ नीम्बड़ी झाला राज भाणजी की पुत्री जसकँवर ५ गढ़ जसपुर के चावड़ा राव सांवत जी की पुत्री राजकँवर ६ गढ़ माँडल के हाडा राव कानड़ देव की पुत्री मानकंवर ७ मालदेव जी देवड़ा सिरोही की पुत्री परनायी| इनके पुत्र १ लूणकरण २ करमसी ३ नरसिंगदास ४ मेहरावण ५ मंडलीक ६ मेहराज ७ बेरीसाल ८ प्रतापसिंह 9 भानिदास थे | पांच बेटों का जेतसिंहहोत भाटी हुए महारावल जेतसीह शांति पिर्य राजा थे | उनकी इस प्रकृति से लाभ उठाकर भाटी सामंत सोढ़े व् बाड़मेरा आदी ने राज्य में अनेक उपद्रव करने लगे | और ऐक दिन उन्होंने राजकुमार के घोड़े को चुरा लिया परन्तु महारावल ने उन्हें कुछ दंड नहीं दिया इस प्रकार अशांति से उनका द्वतीय पुत्र लूणकरण क्रुद्ध होकर उपद्रवियों का दमन करने हेतु कंधार के अधिपति की सहयता लेने के लिए अफगानिस्थान चला गया | उनकी अनुपस्थति में बीकानेर की सेना आक्रमण करती हुयी खास जैसलमेर के नजदीक बासनपीर तक आ पहुंची तब महारावल ने सामना किया और राठौर की सेना मैदान छोड़कर वापिस बीकानेर चली गयी इन्होने ऐक भारी बांध बनवाना शुरू किया था | परन्तु वो समाप्त होने न पाया था | महारावल का देहावसान हो गया | महारावल जेतसीह ने जेरात गाँव बसाया |
:: जेतसिंहोत भाटी 110::
:: दोहा ::
झाले याले चावडे सोढ़ी परणी लाय |
हाडी मांडल गढ़ री जठे परणया जाय ||
:: 184 महारावल करमसी ( भाटी 45 ) 1528 ई .::
:: दोहा ::
रावल जी श्री करमसी कर पनरे दिन राज |