मेजर शेतान सिंह राजपूती आन के धणी परमवीर चक्र

 :: मेजर शेतानसिंह राजपूती आन का धणी::

जैसलमेर का प्राचीनतम इतिहास शूरवीरों की रण गाथाओं से भरा पड़ा है | जहाँ पर वीर अपने प्राणों की बाजी लगा कर भी रण क्षेत्र में जूझते रहे | डटे रहते थे | मेजर शेतान सिंह की गौरव गाथा से भी उसी रणबंकुरी परम्परा की याद ताजा हो जाती है | स्वर्गीय आयुवान सिंह ने उस परमवीर शेतान सिंह के वीरोचित आदर्श पर दो शब्द श्रद्धा सुमन के सद्रश लिपि बद्ध किये है | कितने सार्थक है :---

रजवट रोतू सेहरो भारत हन्दो भाण
दटीओ पण हटियो नहीं रंग भाटी सेताण

मेजर शेतान सिंह वीर जगत का जाज्बलयमान सितारा था | जिसकी बुलंदी की चकाचोंध उस समय प्रकाशमान हुयी जिस 18 नवम्बर १९६२ के ठिठुरने भरे दिन मेजर शेतान सिंह अपने फोजी अमले के साथ चीनी फौजों से लद्दाख क्षेत्र में चुशूल हवाई पट्टी पर मुकाबले में जुटे हुए थे | aek बार तो दुश्मन का दिल दहला दिया चीनी फौजे टिड्डी दल के भांति उमड़ रही थी | दूसरी बार भी चीनियों ने हमला पहले तेज बोला पर फिर भी रणबांकुर शेतान सिंह अपने बहादुरों के साथ कर्तव्य पथ पर चट्टान बन गए दुश्मन फिर धकेल दिया गया था | चीनी फौज दो बार विफल होने पर भी चुशूल की हवाई पट्टी को किसी भी कीमत पर हथिया लेना चाहती थी | चीनी सेना के सेन्य बल एकत्रित कर तीव्र प्रहारक हमला बोला | लेकिन शेतान सिंह मेजर ने भी कमर कस रखी थी | दुश्मन के निर्यातक हमले का जवाब देने को टकरा गए | मेजर शेतानसिंह ने सेनिकों के होंसले बढ़ाते हुए आदेश दिए हमे आगे हि बढ़ना है | पीछे नहीं हटना है | उनका प्रयाश था किसी तरह दुशमनो को आगे नहीं बढ़ने देवें | और पीछे वाली चौकी को उनके बढ़ते हुए आक्रमण की सुचना मिल सके | जेसे मेजर शेतानसिंह बेठे उनके सेनिक बढ़ चढ़ कर दुश्मन की छातिया स्टेनगन से से बीध रहे थे | की एका एकगोला दुश्मन की स्टेनगन से निकला और मेजर शेतान सिंह के पेट की अंतड़िया को पार करता हुआ निकल गया | इसी घड़ी इनके पास केवल २ सेनिक बचे थे जब देखा की दुश्मन बढ़ रहा है और सेनिक उन्हें उठा कर भागना चाहते है | लेकिन उन्होंने घायल शेर की तरह हुंकारते हुए कहा मेरी चिंता छोड़ो में अब बच नहीं सकता वक्त मत खोओ तुम आगे खबर दो की दुश्मन आगे बढ़ रहा है | उस समय उस परमवीर की उम्र मात्र ३८ वर्ष थी | उन्होंने बर्फ की समाधी ले ली थी | उनकी म्रत्यु का समाचार उनकी धर्मपत्नी के गले नहीं उतरा मेजर शेतानसिंह को वीरोचित शोर्य प्रदर्शन करने पर राष्ट्र का सर ऊँचा रखने के लिए राष्ट्र ने उन्हें परमवीर चक्र से गोरवानित किया मेजर शेतान सिंह ने भाटी वंश कर्नल हेमसिंह गाँव बाणासर तहसील फलोदी जिला जोधपुर में जन्म लिया था | शेतानसिंह उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद वकालत का पेशा अपनाने के ललक थी लेकिन कर्नल मोहनसिंह भाटी ओसियां के आग्रह से वे दुर्गा अश्वरोही सेना जोधपुर रियासत में aek केडेट केरम में भर्ती हो गए | मेजर शेतान सिंह पहले अधिकारी थे जो शेनिक गुप्तचर के रूप में गोवा भेजे गए थे | उनका जन्म १९२४ ईसवी में उन्होंने अपने वंशानुगत परम्परा का निर्वाह करने में अग्रणी रहकर उतर भड किवाड़ को सार्थक किया.
जय हिन्द

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