१७७ महारावल गड़सी ( भाटी ३८ ) १३१६ ई. कोटड़ा व् बाड़मेर को साल कटारी में दिए

:: १७७ महारावल गड़सी ( भाटी ३८ ) १३१६ ई. ::

महारावल गड़सीजी विक्रमी संवत १३१७ को जैसलमेर के सिंहासन पर विराजमान हुए । इनके ३ रानिया थी । १ खेड़ के राठौर मलिनाथ की पुत्री विमलादे २ महोबा के राठौर जगमाल की पुत्री कमलादे ३ बाघेली राव थाहरू की पुत्री यह पहले लिखा गया है । की मूलराज के लघुभ्राता रतनसिंह के पुत्र गड़सी और कान्हड़ को महबूब के पास रक्षार्थ भेज दिया था । वे राजकुमार इस समय यूवा अवस्था को पहुँच गए थे । गड़सी व् कान्हड़ ने अपने भाटी योद्धाओं का संग्रह किया और जैसलमेर को पुनः प्राप्त करने दिल्ली बादशाह के पास पहुंचे । रास्ते उनके मामा सोनगदे भी साथ हो लिए थे । उन दिनों दिल्ली के शाह ने खुरासान के बादसाह से पाए एक लोहे के बड़े भारी धनुष को अपनी सभा में रखवा लिया था । और इसकी प्रत्य्त्वा चढाने के लिए अपने वीरो से कहा परन्तु कोई नहीं चढ़ा सका । तब सोनगदे ने प्रत्य्न्वा एकदम चढ़ा दी । जिससे सम्राट बहुत ही प्रसन्न हुआ । इसके अतिरिक्त जिस समय तेहमुरसाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया उस वक्त वीर गड़सी ने ही अपने अनुयायिओं के साथ दिल्ली पति की पर लड़ कर अपना पराक्रम दीखाकर बादशाह की सहायता की । जिससे दिलिश्वर प्रसंन्न होकर उनको गजनी के गेतवार की पदवी दी । और उनको किसी अच्छे प्रदेश का राज्य देना चाहा परन्तु गड़सी ने अपने पूरवजों की राजधानी जैसलमेर ही वापिस लेने की इच्छा प्रकट की । बादशाह ने प्रचलित रीति के अनुसार सनद पत्र देकर उनको जैसलमेर विदा किया । जब उन्होंने जैसलमेर के पास डेरा डाला उस वक्त पीछे से बादशाह के दो बबर मुसलमान तेज घोड़ों पर आए । जिनके पास बादशाह का दूसरा पत्र था । जिसमे जैसलमेर का किला थानेदार को खाली न करने को लिखा था । गड़सी जी ने उनसे यह पत्र छीन लिया । और उन दोनों के सिर वहीँ काट डाले । जब से यह स्थान बबर मगरे के नाम से प्रसिद्ध हुआ आज भी यही नाम है । बबर सवारों को मार कर उसी समय आगे कूच दिया और जैसलमेर के साही थानेदार को निकालकर अपना कब्ज़ा कर लिया इस प्रकार वीर महारावल गड़सी ने पुनः अपनी जन्म भूमी का उदार कर संवत १३७३ विक्रमी को राजसिंहासन पर विराजमान हुए और अपने उजड़े हुए प्रदेश को फिर आबाद किया । उनके सिंहासन पर आरुढ़ होने से तमाम प्रजा व् सामंत हर्षित हुए । परन्तु जसोड़ वंशज जिनका की पहले १० वर्ष अधिकार महारावल दूदा का रहा था । इन नवीन महारावल की राज्य प्राप्ति से असंतुष्ट हुए ।

:;कोटड़ा व् बाड़मेर को साल कटारी में दिए .  ::

महारावल गड़सी ने जसोड़ों का दमन करने के लिए मलिनाथ के पुत्र जगमाल को बाड़मेर तथा कूंपा को कोटड़ा साल कटारी में दिए तथा उनको अपने उमराव बना दिया ।

लगातार ..................
जय श्री कृष्णा 
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