महारावल दूदा ( दुर्जनसाल ) भाटी ३७ जैसलमेर का दूसरा शाका

:: महारावल दूदा ( दुर्जनसाल ) भाटी ३७ जैसलमेर का दूसरा शाका ::

महारावल दुर्जनसाल ने अपने पूर्वजों की राजगद्दी पर संवत १३५६ विक्रमी को जैसलमेर में विराजमान हुए इनके ११ रानिया थी । १ अमरकोट के सोढा राणा गड़सी जी की पुत्री से विवाह हुआ तथा अन्य रानिया थी । इनके ४ पुत्र थे । इनके भ्राता तिलोकसिंह महावीर थे । उन्होंने नगर थटटा के दुर्ग से कुमरा कुमरा नामक बलोच को मार कर धोड़िया और बहूत साधन छीन लीया और कई जगह लूट खसोट कर खूब धन इकठ्ठा किया और उस धन को सुक्रत में लगाया । दूदा ने खीवसर के करमसोत सरदार की कन्या से विवाह किया । इस राजकुमारी के  साथ खीवसर के सिरदार ने शादू वंशीय हूफा नामक चारण को भेजा था । जिसकी वीर रस पूरण कविताओं से दूदा बहुत प्रसन्न रहते थे । इनके भाई तिलोकसी चारों तरफ उपद्रव मचाते थे । उन्होंने अजमेर जाकर तत कालीन दिल्ली के बादसाह फिराजेशाह के बहुत से अच्छे -अच्छे घोड़ों को छीनकर जैसलमेर भेज दिया । वीर तिलोक सी की उद्दणता की शिकायत बादशाह के पास पहुँचते ही वह आग बबूला हो गया । और अपनी असंख्य सेना से जैसलमेर पर आक्रमण कर दिया । राजपूत युद्ध के लिए पहले से ही तेयार थे यवन सेना ने घेरा डाल दिया और छः वर्ष पर्यन्त युद्ध होता रहा । किन्तु बादशाही सेना किला न जीत सकी । किले में भोजन सामग्री ख़तम होते देख दूदा ने एक चाल चली । उसने हरिजनों से सुअरोनियो का दूध निकलाकर खीर बनवाई और खीर को पतलों में लगाकर उन्हें किले से बाहर फेंकवा दिया । बादशाही सेना धोखा खा गयी । उसने खीर लगी पतलों को देख समझा की अभी तक किले में खाध्य सामग्री बहुत बाकि है । ऐसी सूरत में किला जीतना मुश्किल है । अतः मुसलमान सेनापति ने युद्ध बंद कर वापिस जाने की तेयारी कर ली । किन्तु इसी बीच किसी गुप्तचर ने सूचना दी की किले में भोजन सामग्री ख़तम हो गयी है । अगर ३ दिन और ठहर जाये तो किला आसानी से जीत सकते है । अतः सेनापति के आदेश पर फिर युद्ध का बिगुल बज उठा वस्तुत भोजन सामग्री ख़तम हो चुकी थी । रावल दूदा ने जीत की आशा छोड़ जोहर का हुकुम दे दिया ।ओर भयंकर संग्राम कर वीरगति को प्राप्त हुए । इस युध्ह में जसोड़ उतेराव ने बड़ी वीरता दिखाई । ये जुझार हुए । और आज तक जैसलमेर की जनता द्वारा पूजे जाते है । उतेरव के वीरगति होने के पश्चात् वीर दूदा और तिलोक सी ने अपने साढ़े पांच हजार सेनिको के साथ असंख्य मुसलमानों को यमलोक भेज स्वर्ग प्राप्त किया । उस दूदा की महारानी खीवसर थी । वहां चारण हुंफा द्वारा अमंगल समाचार सुनकर सत करने के लिए अपने पति का सिर लाने को कहा । हुंफा ने जाकर यवन सेनापति से सिर के लिए प्राथना की उसने जवाब दिया की रणभूमि में असंख्य सिर कटे है । यदि तुम रावल का सिर पहचान सकते हो तो ले जाओ हुंफा ने कहा मेरे लिए सिर का पहचानना कठिन नहीं है । मेरी वीर भरी कविताओं को सुनकर सर् हंस पड़ेगा । कविराज की अद्भुत बात सुनकर सेनापति व् उसके अनुचर भी साथ हो लिए रन स्थल में पहुँच कर हुंफा के कविता पढने पर महारावल का सिर खिल -खिला उठा । उसके कवित्व शक्ति की प्रशंसा में दोहा प्रसिद्ध है ।
:: दोहा :::

 सांदू हूफे सेवियों साहब दुर्जनसल ।
 विड़धे माथो बोलियों गीतों दुहो गल ।
इस प्रकार महारावल दूदा के १० वर्ष राज्यकाल के पश्चात् जैसलमेर फिर यवनों के अधिकार में चला गया ।

 :: दोहा ::

दूदा अने तिलोकसी पायो गढ़ जैसाण ।
हाथ मंडा बैठा नृपत जाणक ऊगा भाण ।

:: छ्पय :

जैसलमेर गढ़ बीच जसोड़ सूत वरदाई
बरस तीन सात मास राज सुखदेस बसावी
बरस सात पंचमास कलह विग्रह बिच बीते ।
रख नाम संसार जेण पतिसाह वदीते
दूदे तिलोकसी राख नाम इण जग उघरे ।
जादव वंस कुल महपति कर साको नर सुधरे ।

 :: दोहा ::

दूदा अने तिलोकसी साको कियो संसार
तेरह सो छासठ भड़ रहिया भाटी लार
एमारै अड़िया किले रहि या दल ने ठाह
हठ हुवो दूदो सरस पारम पेरोसाह
जैसलमेर दुग्गाम गढ़ बढे न आवे हत्थ
तो सरीखी सोदागिरी कैति कर गयी कत्थ
पड़े वाज गजराज पड़े वह रावत भारिया ।
पड़े खेत बंगाल जास को अंतन पारिया
पड़े खेत जदू राय जेण असगर नर खड़िया
पड़े सुर विकराल जेण जग नाम सो मंडिया
   चवदे हजार दो सो असिया भिड़े मीर रण खेत पड़
  दूदो तिलोकसि पड़िया पछे जैसल गिर पडियों अनड़
                                                              
:: दोहा :

 तब ऐकण नर अपिया फिरोजशाह हजूर
 घोड़े लिए तिलोकसी है भाटी नर सूर ।


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