भू की दोपहरी

  :: भू की दोपहरी ::

सन १३१९ ई . में जब यवन सेना जैसलमेर के सून्य दुर्ग के ताला लगाकर दिल्ली लोट गयी तब खेड़ के शासक मलीनाथ के पुत्र जगमाल ने उस दुर्ग पर अधिपत्य जमाना चाहा । किन्तु भाटी राजवंश के जसोड़ के वंशज दूदा और तिलोकसी सिन्ध प्रदेश के थरपारकर में रहते थे । यवन सेना के लिए रसद आती थी उसे लूट लेते थे । इन को खबर मिली की जैसलमेर के शून्य किले में जगमाल अपना आधिपत्य ज़माने जा रहा है । दूदा तिलोकसी और तोला पाऊ जैसलमेर पहुंचे और किले में प्रवेश करके जगमाल जी द्वारा अनाज के तीन सो गाडे किले में खाली करके उन गाड़ो वालों को अपनी एक -एक अंजली धान की दुपहरी के लिए दी ।वह अनाज एक अंजली दस किलोग्राम हुआ उस अनाज को देखकर जगमाल वापिस खेड़ को लोट गए क्यूंकि अब इनसे किला जीतना मुश्किल है । इसे भू की दोपहरी नाम से कहते है । दूदा ( दुर्जनसाल ") तिलोकसिंह जैसलमेर में आदीपो तोला पाऊ को देते थे । बाद में धोलेर के महलों में बैठे तोले पाऊ का तिलोकसी ने वध कर दिया ।

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