:: अलाउदीन व् महारावल जेतसिंह भाटी ३५ १२७९ ई . का युद्ध ( प्रथम शाका)::
अलाउदीन खिलजी को जब जैसलमेर राजकुमारों द्वारा खिलजी का खजाना बीच ही लूट लेने से समाचार मिलने पर उसने सेनापति महबूब खान और अलीखान की अध्यक्षता अपनी बड़ी सेना लेकर जैसलमेर पर आक्रमण किया इस सेना की खबर पाकर महारावल जेतसिंह ने उचित प्रबंध कर लिया और प्रथम हमले में ही सात हजार मुसलमानों को यमलोक भेज दिया । परन्तु साहसी साहसी सेनापति ने अपशिष्ट सेना ने जैसलमेर के किले को घेर लिया । सलमान सेना की रसद मंडोर से आती थी । जिसको देवराज व् हमीर मार्ग में लूटकर दूसरे रास्ते से किले में पहुँचाया करते थे । परन्तु यवन यवन सेना ने साहस नहीं छोड़ा और युद्ध करते -करते आठ वर्ष व्यतीत हो गए इस समय के दोरान महारावल जेतसिंह का स्वर्गवास हो गया ।
:: महारावल मूलराज ( भाटी ३६ )::
उसने इन बालकों को सम्मान सहित डेरे में भेज दिया भाटी सेना ने तुरंत ही दुर्ग के द्वार खोल दिए । और ज्योही यवन दल दुर्ग में प्रवेश करने लगा भाटी गण भिड गए । अकेले वीर रतनसिंह ने ९२० यवनों को मार धराशाही हुए । और महारावल मूलराज ने भी घोर युद्ध कर अपने वीरों के साथ स्वर्ग को पर्याण किया । इस प्रकार संवत १३५१ विकर्मी में जैसलमेर यवनों के हाथ लग गया । और यवन सेनापति ने उस सून्य दुर्ग में रहना व्यर्थ समझ किले के दरवाजे पर ताला लगाकर चले गए । यह जोहर शाका विकर्मी संवत १३५१ पोष वदी ११ तथा १३१९ ई . में हुआ ।
:: छपय ::
भयो रावल मूलराज वरस एकसिर
रतनसिंह भड़ साथ जाड़ कर वाहि असमर
आठ सो साथीय अप पड़े जूझे रण समर
संमत तेरे इकावने सरग पहुता अपछर वरे
मूलराज रतनसिंह महीपति साको कियों धर ऊपरे ।
:: दोहा ::
इम विढ़ता अर लूंबता बिते बरसे आठ एक
घेर गात पत साह की फौज रही जुठ जेक
जेतसी रावल म्रत्यु होय गढ़ रोहे में राज
जेतसिंह पंचतत्व होय रावल भयो मूलराज
कोट मंज तिण दाह दिय भई लोक भये जास
जैसलमेर गढ़ ऊपरे बाजे बहु विध वाज
सुण पुकार अलाउदीन भये रोष तब साह
ऐसा हिन्दू कोन है जो मारे है राह
भाटी मूला रतनसिंह दिन की मारे राह