भाटियों द्वारा साहित्य को प्रोत्साहन

::भाटियों द्वारा साहित्य को प्रोत्साहन ::

भाटी शासकों के संरक्षण व् प्रोत्साहन से साहित्य की बड़ी प्रगति हुई । धार्मिक सहिष्णुता होने से यहाँ जैन साधुओं ने साहित्य को बहुत बढ़ावा दिया । उन्होंने उन भावनाओं को द्रष्टि में रखते हुए साहित्य के धार्मिक सृजन के अलावा लोकजीवन से सम्बोधित रचना की । तेरहवीं से पंद्रहवीं सदी में कई जैन साधुओं ने धर्म ग्रंथो की रचना की । जिससे साहित्य सृजन हुआ । उनमे मुख्या पूर्व भद्र गणी , खरतर सूरी , विवेक समुन्द्र गणी , समर्धीमह्तरा आदि मुनि प्रमुख है । जैन मुनि कुशल लाभ ने नवकरछन्द व् पाश्र्व स्तवन नामक धार्मिक रचनाएँ तैयार की । वही संवत १६०७ विक्रमी में उन्होंने रावल हरिराज की प्रेरणा से ढोला मखन पध काव्य भी रचा । जो आज भी राजस्थान भर में प्रसिद्ध है । यह एक लोक काव्य है । अठारवीं सदी विक्रमी में जैन मुनि अमर विजय ने जैसलमेर स्वतन नामक ग्रन्थ की रचना की । जब देश पर विदेशी शत्रुओं के आक्रमण हुए तथा संस्कृति धरोहर उनके हाथों नष्ट होने लगी । तब जैन मुनि जिन भद्र सूरी के निर्देश पर पाटन के जैन भंडार के ग्रन्थ जो हजारों की संख्या में थे । उन्हें सुरक्षित रखने की द्रष्टि से जैसलमेर स्थानानात्रित किया गया । जहाँ किले में एक गुप्त तलधर में उन्हें सुरक्षा की द्रष्टि से रखा गया । जिनकी बीसवीं सदी तक बहुत ही कम विश्वस्त व्यक्तियों को ही जानकारी थी । इस प्रकार देश की बहुत ही कीमती धरोहर जैसलमेर में सुरक्षित रखी गयी । इस भंडार में विक्रमी १२०३ में लिखा गया ताड़ पत्र बोद्धिक दार्शनिक दिड्नाग का न्याय प्रवेश ग्रन्थ है जो विश्व में और कहीं नहीं है । जैसलमेर में चारण कवी प्रतिभा संपन्न हुई । उन्होंने साहित्य को बड़ा ही सम्रद्ध बनाया ।  उनमे प्रमुख हडूवा ग्राम के आल्हा , बोगनियाई गाँव के पीठवा और दधवाडा गाँव के माँडण कवी हुए । पीठवा को मेवाड़ के प्रसिद्ध महाराणा कुम्भा करोड़ पसाव का दान देना चाहते थे परन्तु अपनी त्याग व्रती से उसने दान लेने से इंकार कर दिया था । रावल दूदा दरबार में मण्डन और साहू हुकमकरण थे । रावल दूदा एक स्वयं अच्छे कवी थे । रावल ने कवी को आश्रय देने के अलावा व् खुद उच्च कोटि के विद्वान् थे । उन्होंने पिंगल शिरोमणि ग्रन्थ की रचना की थी । रावल हरिराज की पुत्री चम्पादे भी एक अच्छी कवियत्री के रूप में हुयी । इसका विवाह बीकानेर के प्रथ्वीराज के साथ हुआ था जो उच्च कोटि के कवी थे । रावल मूलराज द्वतीय विद्वान् काव्य रसिक तथा ज्योतिष के प्रेमी हुए । जोधपुर राज्य अन्तरगत जाखण के भाटी गोविन्ददास की पुत्री प्रताप कुवारी काव्य में बड़ी प्रतिभशाली सिध्ह हुई । उसका विवाह महाराजा मान सिंह के साथ हुआ । जाखण के ही अन्य भाटी लक्षमण की पुत्री रतन कुंवर बड़ी भक्त कवयित्री थी । इसने रघुनाथ पर रचनाये की है । इनका विवाह ईडर के प्रसिद्ध नरेश राजाप्रताप के साथ हुआ था । वर्तमान में डा. नारायण सिंह भाटी राजस्थानी साहित्य के प्रतिभाशाली विध्वान है । ये चोपासनी हाई स्कूल के शोध संस्थान के डायरेक्टर है । साहित्य व् शोध के क्षेत्र में बड़ा उल्लखनीय कार्य कर रहे है । आपके भाई डा, हुकुम सिंह इतिहास के विद्वान् है । उन्होंने कई ग्रन्थ की रचना की है । ख्यालों को भी तैयार किया गया । लोक गीत में छोटे - छोटे आकार की झीडे रची गयी । जो रामदेव गोगाजी पर है । लोक साहित्य का बड़ा सृजन हुआ है । बहुत सा साहित्य मोलिक है ।

Previous Post Next Post