172 महारावल लाखन भाटी ३३ और महारावल पुनपालभाटी ३४

 :: १७२ महारावल लाखन सी (भाटी ३३  ) १२७०  ::

महारावल लाखनसी विक्रमी संवत १३२७ को जैसलमेर के राज सिंहासन पर विराजमान हुए । इनके ७ रानिया थी । इनके विवाह अमरकोट के सोढा राणा देसल की पुत्री सुगण दे । गढ़ बाव के चौहान राणा दोहट की पुत्री प्रेम कँवर । गढ़ जालोर के सोनगरा चौहान राव कानड़दे  की पुत्री तथा ४ सोढ़ी रानियों से विवाह किये महारावल लाखन सी दयावान व् अत्यासंत सरल स्वभाव के थे । इन्होने ही श्रगालो की चिल्लाहट सुन उनके लिए वस्त्र व् मकान बनवा दिए थे । ये मकान अब जैसलमेर के पश्चमी दरवाजे के बाहर छिन्न भिन्न दशा में मोजूद है । जो सियालियों के कोठों के नाम से प्रसिद्द है । महारावल की सरलता के कारण सोढ़ी महाराणी ने धीरे - धीरे समस्त महत्वपूरण पदों पर सोढों को नियत कर दिया । उन सब ने भाटी राज्य हड़पने के विचार से एक दिन सरल चित महारावल लाखन सी को मार दिया । यह देख महारानी अत्यंत क्रोधित व् शोकाकुल हो उठी । और भाटी सिरदारो ने क्रोधित होकर सोढो के इस करतूत के कारण जैसलमेर में रहने वाले समस्त सोढों को मार किले से बाहर फेंक दिया ।
:: दोहा ::
रावल लाखन सी भोला राजा भूप ।
तेरे सो सताईस में बैठे पाट अनूप ॥ 

:: १७३  महारावल पुनपाल ( भाटी ३४ ) १२७४ ई .::

महारावल पुनपाल विक्रमी संवत १३३१ जैसलमेर के सिंहासन पर आसीन हुए । इनके विवाह बेलवा के पड़िहार राणा उदेराव की पुत्री पेम्प कँवर । गढ़ सिरोही के देवड़ा राव धारण की पुत्री जाम कँवर से हुए । इ इनके १ कुंवर लखमन २ भोजदें थे महारावल पुनपाल अत्यंत क्रोधी तथा राजनीती से अपरिचित थे । इसलिए उनके प्रधान दुसाल भनकमल बीकमसी सीहड़ ने गुजरात से जेत सिंह को कागद मेल बुलाया की आप आवो आपको राज्य देवों । तब जेतसिंह जो गोरे रे आया सो विकमसी भणकमल , सीहड़ ने जेतसिंह को गोरेरे से लाकर गादी बैठाया । रावल जी पुनपाल को शिकार का बहाना बनाकर बाहर ले गए ।

:: कविता :
सो पुनपाल बेठो गादी राज
तेरे सो इकतीस में आय थानी महाराज
आप थापी महाराज , उतार दियो गादी सुं
जेतसी बोलाय बैठाया दगेबाजी सूं
इनको पोतो राव राणगदे पुगल पति सो जिण सादोकुन्वर
परणीजी यो कोडम छते सा


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