170 महारावल चाचकदेव ( भाटी ३१) १२०७ ई

::  170 महारावल चाचकदेव ( भाटी ३१) १२०७ ई . ::

महारावल चाचकदेव विक्रमी संवत १२६४ में जैसलमेर के सिंहासन पर विराजमान हुए । इनके ६ रानिया थी । इन्होने खेड़ के गोहल राव दफजी की पुत्री । गढ़ डूंगरपुर के सिसोदिया रावल पूंजा की पुत्री हंसुकंवर , गढ़ माँडन के हाडा राव सतरंग जी की पुत्री सूरज कँवर । राणा सोढा हमीर की पुत्री जामकंवर । गढ़ खेड़ के राठौर राव हाडाजी की पुत्री इनके पुत्र तेजराव २४ की वर्ष की आयु में शांत हो गए । उनके २ पुत्र जेतसी और करनसी थे । महारावल चाचकदेव के शासनकाल में सोढा चन्ना और बलोचों ने मिलकर नगरथाटा के मार्ग में बुलाकीदास नामक भाटीय का ५ लाख का माल लूटा । प्रजा पिर्य महारावल ने अपने योद्धावों के साथ उन पर चढ़ाई की और १६०० चन्नो और बलोंचो को मार कर उनका सारा धन तथा १४०० दूध देने वाली गायों को अपने हस्तगत कर लिया । बाद में चन्नो और बलोंचो के सहायक अमरकोट के सोढा राणसिंह पर आक्रमण किया । १३०० सोढा राजपूतों के शहीद पर चाचकदेव की अधीनता स्वीकार कर ली और अपनी कन्या महारावल चाचकदेव को अर्पित कर दी और घनिष्ट सम्बन्ध स्थापित कर दिए । महारावल चाचकदेव का प्रेम अपने पोते करन सी पर अधिक था अतः उन्होंने यह घोषणा कर दी थी की करन सी मेरा उतराधिकारी बनाया जाय । पेंतीस वर्ष राज्य कर महारावल स्वर्गवासी हुयें
:: छ्पय ::

रावल श्री चाचकदेव पाठ बेठो तपधारी ।
बारह सो चोंसठ समत सुभ वक्त विचारी ॥
चन्ना मार बलोच सोढा ने दी सिक्स्त फिर ।
अमरकोट परनीज  सोढीलायो जैसलगिरी ॥
खेड़ धणी राठौर पर छाड़ेगी ने सर किया ।
सूर वीर रणधीर अपणो भुजबलजस लियो ॥


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