१५० राव मंडमराव (भाटी११) और १५१ सुरसेन और १५२ रघुराव

::150 राव मंडमराव (भाटी 11)::

राव मंडमराव संवत 616 में गढ़ मारोट के सिंहासन पर बैठे । इनका विवाह पंवार राव दूसाजी की पुत्री भारू कंवर दूसरा विवाह गढ़ छापर के मोयल राजा जांजण की पुत्री मोतीकँवर से हुआ । इनके पुत्र 1 सूरसेन 2 सतरंगदेव 3 जसराव थे । मंडमराव ने युवा अवस्था में पदार्पण करते ही सिन्धु नदी के पश्चिम किनारे पंवार राज्य की सीमा में मारोट नामक नवीन गढ़ बनाया । इनकी इस दुरावस्था में अमरकोट के सोढो ने पुंगल के पंवारो ने लुद्रवपुर के लुद्र्वा जाती के पंवारो ने भटिंडा के वराहो ने तथा जांघे के मुट्टा जाती के राजपूतो ने उनके साथ विशेष सहानुभूति का बर्ताव किया उनके पुत्र रघुराव थे । सुरसेन पाटवी थे ।

::151 राव सुरसेन (भाटी 12)::

राव सुरसेन संवत 667 विक्रमी को गढ़ मारोट के सिंहासन पर आसीन हुए । इनके 7 रानिया थी । इनका विवाह सांभर के चौहान राजा सुजान की पुत्री मानकुंवर से हुआ । चौहान रानी सती हुई । दूसरा विवाह उज्जैन के राव सिंधल की पुत्री राजकुंवर से हुआ वो भी सती हुई । सुरसेन ने गढ़ मारोट में भाट उनड़ को लाख पसाव दिया । पाटवी रघुराव थे 

::153 राव रघुराव (भाटी 13)::

राव रघुराव गढ़ मारोट में संवत 702 को पाट बैठे । इनका विवाह गढ़ विरनाल के राव सोलंकी मांडण की सुगणादे दूसरा विवाह गढ़ खेड़ के राव गोहल जाम की पुत्री तीसरा विवाह उंझा के राजा आभड़ की पुत्री रंगरुपदेह लोद की से विवाह हुए ।


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