जैसलमेर का इतिहास १६६ महारावल जैसल भाटी २७

::१६६ महारावल जैसल भाटी २७ ::

महारावल जैसल विक्रमी संवत १२०९ को लुद्रवे के सिंहासन पर विराजमान हुए । इनके विवाह १ गढ़ पारकर के सोढा राणा हंसराज  की पुत्री २ नागोद के पड़िहार राव भाण की पुत्री उदेकंवर ३ गढ़ नीमराणा के चौहान राव चनड़ की पुत्री विलेकंवर ४ गढ़ पाबा के बाघेला राव नाधण की पुत्री जाम कँवर ५ पंवार धारू की पुत्री से हुए । इनके कुवर १ कालन २ शालिवाहन बाइसा १ सरस कँवर २ प्रेम कँवर थी । महारावल जैसल ने शत्रु दल को रोकने के लिए लुद्रवापुर के किले को अनुपयुक्त समझ नवीन गढ़ निर्माण करने के लिए अमरावों कामदारों ने हुकुम दियो गढ़ बनाकर शहर बसावें ऐसे स्थान की तलाश करो । जद ईशाल ब्राह्मण से पूछने पर उसने किले की जगह दिखाई और कहा एक समय द्वारिका जाते समय श्री कृषण और अर्जुन यहाँ से पंद्रह किलोमीटर दूर त्रिकुट ( भोमसेण भाखर ) पर विश्राम के लिए ठहरे थे । उस वक्त अर्जुन को प्यास लगी थी तब श्रीक्रिशन ने चक्र से जैसलू कुआँ बनवाया था और उस कुए पर भविष्यवाणी इस प्रकार खुदवाई थी ।
सुन अर्जुन मो वंश रा जैसल नाम धराय ।
कोइक दिनों के आन्तरे ऐथ बसेला आय ॥
पत्थर पर खुदी हुई वाणी का आशय यह है की किसी समय यदु सम्भूत जैसल नामक नृपति यहाँ पर नवीन दुर्ग बना कर इस पर्वत पर अपनी राजधानी स्थापित करेगा । जैसल यह देख बहुत प्रसन्न हुआ ।


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