::१६५ महारावल भोज भाटी २६ ::
:: छपय ::
रावल जी श्री भोजदे छत्रधारी अवनीस ।
बारह सो चतुर्थ संवत लुद्रव्पुर गादी इस । ।
लुद्रवपुर गादी ईस शीश दीन्हो जस लीनो
मारोखान मजीज जैसल ने राज दीनो
गौरी सहबुधीन सोलंकिया सू थो कावल
पाटन पाते जेसिघ बीच में लड्यो रावल ।
चढ़ी फौज पात साह सिंध जैसंघ सू ऊपर
जैसल ते किया अगराहे राणे धर सु धर
तीन लाख तोख़ार धल पखर तण ऊपर
चवदे सहस्त्र गजराज धरा पग चलता भखर
पह बढे मीर वानेत धर चली सेन धर चल चली
खुरा तूती धर्मकंत धड़ - उड़ रजी अंबर हली
जब महारावल भोजदे लुद्र्वे की गादी बिराजे तब नीति निपुण जैसल ने सहबुधीन गौरी को सोलंकियो की अन्हड़ बाड़ा पर आक्रमण करने की अनुमति दी और उसने एसा ही किया । भोजदे के अंगरक्षक ५०० सोलंकी राजपूत सदा उनके साथ रहते थे यह खब़र पाकर अपने देश की रक्षा के लिए चले गए । उधर जैसल सहबुधीन गौरी के सेनापति अधीनस्थ मुसलमान सेना तथा अपने दो सो भाटी वीरो को साथ लेकर लुद्रवा पाटन पर चढ़ गया । महारावल भोजदे ने वीरता से सामना किया और ७०० योद्धाओ के साथ वीर गती को प्राप्त हुए । रावल भोजदे का सिर तलवार से कटकर लुद्रव की प्रोल के आगे गिरा किन्तु धड़ शत्रुओ की सेना से लड़ता - लड़ता वर्तमान जैसलमेर के दुर्ग से पूर्व लुद्र्वा से १७ किलोमीटर पर गुली छिडकने पर गिरा । वहा पर भोजदे का खेजड़ा उसका तना आज भी मौजूद है । वहा देवी का मंदिर स्थापित है ।
::: दोहा ::
आडा कुवाड़ उत्राधरा भाटी झालन भार ।
वचन राखो विजेराज रा समहर बाँधा सार । ।
हूँ तोड़ो धड़ तुरकान री मोड़ो खान मजेज ।
भाखे भोज अधपति जादम कर मत जेज ।
गौरी साह्बुदीन भिडिया रावल भोजदे
नाम अमर रख लीना बारह सो नव लुद्रवापुर ।
:: दोहा ::
रणखेत पड़े भोजदेव तब जैसल रिण आय ।