१५९ महारावल देरावर भाटी २०

:: 159 महारावल देरावर (भाटी 20)::

महारावल देरावर का जन्म संवत 892 विक्रमी वैसाख सुदी 14 वार अदित्वार रोहिणी नक्षत्र में हुआ । महारावल देरावर संवत 909 में सिंहासन पर विराजमान हुए इनके 45 रानिया थी । इनका विवाह गढ़ बिठ्डा राव अमरा झाला की पुत्री हरकंवर गढ़ लुद्र्वा के पंवार राजा जसभाण की पुत्री चंपाकँवर , रामकुंवर गढ़ चितोड़ के रावल सूरजमल  गेहलोत की पुत्री सुरजकंवर , चितलवाना के राव मंडलीक चौहान की पुत्री राजकुंवर । गढ़ खेड़ के जगमाल की पुत्री । सातलमेर के तुंवर बछपाल की पुत्री ।राजा सारंगदेव की पुत्री पनेकँवर । चाडो राव भाण की पुत्री । दूजी देसल की पुत्री ।  (रताकोट के सोढा राणा भोज की पुत्री ) गढ़ दोसा के कछावा राव भीमदेव की पुत्री सुजान कँवर रीवा के बाघेले राजा सांगो जी की पुत्री दिले कँवर ।सोनगरा राव घुहड़ की पुत्री से विवाह किये । इनके पुत्र गोहल रा पाटवी कुंवर 1 मंधजी 2 छैनोजी 3 छिकण 4 सत्रंगदेव पुत्रिया 1 सुगनकंवर 2 लालकंवर 3 चन्द्रकंवर थी । ये बड़े प्रतापी राजा थे । महराजा देरावर प्रोहित देवात की संरक्षता में रहकर अवसर पाकर अपने गुप्त रूप से अपने मामा भुटा अधिपति जुजराज के पास चले गए । उन्होंने ननिहाल पहुंचकर अपनी माता का दर्शन किया । देरावर को इस दशा में देखकर मामा ने उनको एक गाँव देने का विचार किया किन्तु उनके भाई वगेरह इस कार्य से नाराज हुए और अपने राजा से अर्ज की कि यदि भाटी कुंवर को आपने जरा सी भी भूमि दी तो भविष्य में आपके लिए अच्छा नहीं होगा परन्तु जुजराव ने आखिर में देरावर को जमीन अपने राज्य में दे दी ।इसके बाद देरावर को सोभाग्य वंश गुरु रतन नाथ से मिलन हो गया ।
बाबा रतननाथ ने देरावर पर प्रसन्न हो कर वरदान दिया और जंजर कथा जोजरी डांग व् पारस भेंट किया और कहा की तुम्हारे वंशज चोर होंगे । खोश खावना व् भाग जावणा । तुम बड़ा होवोगे और अपने पित्र हन्ता का वेर लोगे । घोड़ो के भगवी झूल रखना , भगवो तम्बू , भगवो निशान , भगवी जाजम रखना और भगवी गादी बेठना । गादी  बेठने पर स्यालसिंगी भगवा धागा गले में डालना रावल कहलाना इतना करते रहोगे तो जीत तुम्हारी होगी । राज्य अडिग बना रहेगा । यह मेरा निशान रखना । देरावर को पारस प्राप्त होने पर देरावर गढ़ की नींव रखी ।

:: दोहा ::
      संवत नो सो देइ देरावर नींव ।
     के भुटे का भाटियों सब लागेली सीव ।।
    राव जूजा से बोलेणों बोल न पाछो लेय ।
   का भुटा का भाटियों कोट अडावन देय ।।
   सिद्ध वचन कर पायके सिद्ध भये देवराज ।
  रतन हाथ तिलक कियो कहयो भूप सिरताज ।।

इस तरह देरावर ने महारावल की पदवी प्राप्त की तब से आज तक उनके वंशज नरेश महारावल कहलाते है । देरावर ने 52 बुर्ज वाला देरावर गढ़ का निर्माण किया .







   
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