विजय राज और परमारों का युद्ध

::विजय राज और परमारों का युद्ध ::

विजय राज पर परमार वंश के नो राजाओ ने मिलकर आक्रमण किया । घमासान युद्ध हुआ । युद्ध में परमारों की विजय होती देख महाराजा विजय राज तनोटिया के मंदिर में धरना पर बैठ गए ।तब देवी ने प्रसन्न होकर चूड़ और खांडा बक्सीस किया और वरदान दिया की जब तक तेरे हाथ में चूड़ और खांडा रहेगा । तब तक संसार में तुम्हे कोई परास्त नहीं कर सकेगा । जब भी युद्ध होगा देवी का अदीठ चक्र चलेगा और शत्रुओ का संहार कर देगा । और रात को जब सोयेगा तब सवा पांच सेर सोने की चूड़ प्राप्त होगी ।जिससे अपना राज काम चलना । इस रहस्य का किसी को पता नहीं चलने देना । युद्ध के समय घोड़े की नोत पर सुगन चिड़िया के रूप में आकर बेठुंगी । तब तुम्हारी विजय होगी । दुसरे युद्ध में जब परमारों की हर होने लगी तब परमारों ने सोचा इतनी बड़ी सेना के होते हुए भी हार होने जा रही है क्या कारण । तब परमारों ने दो सेनिक स्वामी का भेष कर तनोट गढ़ की पणहारियो के रास्ते जासूसी करने गए । तब पणिहारियो से पता चला की राजा विजयराज से देवी प्रसन्न होकर चूड़ और खांडा दिया है । तब उन्होंने सोचा की इस प्रकार युद्ध करने से जितना मुस्किल है ।तब परमारों ने मिलकर छल से अपना कार्य करने के लिए भटिंडा अधिपति वराह जाती के नरेश अमरसिंह झाला ने अपनी पुत्री हरकंवर का विवाह देरावर के साथ करने का विचार कर नारियल भेजा । भाटी राजा इस षड़यंत्र से बिलकुल अनभिज्ञ थे । अतः इन्होने केवल 800 सरदार आदी सेनिक साथ लेकर भटिंडा चले गए । वहा इनका पहले तो अछा स्वागत हुआ और विवाह भी हो गया परन्तु रात्री में जब विजयराज अपने सेनिकों के साथ सोये हुए थे । पहले तो चूड़ और खांडा चुरा लिए गए उसके बाद दुष्ट वराहो ने सबको एक - एक करके मार डाला । केवल देरावर जो उस समय महलो में थे बच गए । उनको उनकी सास ने गुप्त रूप से एक रायका के साथ ऊंट पर चढ़ा कर भगा दिया । देरावर ने झाला नरेश के प्रोहित देवात की सरन ली जिन्होंने अपनी बुद्धिमता से उनको बचा लिया गया । विद्रोहियों ने भाटियो की राजधानी तनोट पर आक्रमण किया जहा देरावर के वृद्ध दादा तनुराव शत्रुओ से युद्ध करके वीर गति प्राप्त हुए । तीन सो पचास सतिया तनोट पर एक दिन में हुई 

:: दोहा ::
ते सू बड़ो सूमरो लांझो विजेराज ।
माँगण ऊपर हाथड़ा बेरी ऊपर घाव ।।

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