131 महाराजा हंसपत ,132 महाराजा देवकरण,133महाराजा भारमल ,134 महाराजा खुमाण,135 महाराजा अरजन,136 महाराजा जुजसेन ,137 महाराजा गजसेन इन सभी राजाओं ने हंसार पर शाशन किया क्रमश भाटियों का स्वर्णिम इतिहास

:: 131 महाराजा हंसपत ::

महाराजा के पुत्र हंसपत ने विकर्मी  संवत 2  मिति   काती सुदी 13 गुरुवार ने हंसार गढ़ की स्थापना की इनके 11 रानिया थी इनका विवाह धारनगर के पंवार राजा सारंगदेव की पुत्री जसवंती से  किया हंसार को अपनी राजधानी बनाई बाग़ लगाया राजा  वीर विक्रमादित्य द्र्तीय उज्जैन के पंवार महाराजा हंसपट के समय में हुए  थे इनके पुत्र 1 देवकरण 2 गंगदेव 3 मलेसी थे
:: 132 महाराजा देवकरण ::

महाराजा देवकरण विकर्मी संवत 46 में गढ़ हंसर के राज्य सिंहासन पर बिराजे इनके 24 रानिया थी इनका विवाह गढ़ बंधू के बाघेले  राजा  चामुंड की पुत्री राम्भावती से हुआ इनके पुत्र 1 भारमल 2 कुनन  3 मलेसी थे

:: 133 महाराजा भारमल ::

महाराजा भारमल गढ़ हंसार के राजसिंहासन पर विक्रमी संवत 71 में विराजमान हुए इनके 7 रानिया थी इनके 3 रानिया गढ़ हंसार में सती हुई इनके पुत्र खुमाण पाटवी थे

 :: 134 महाराजा खुमाण ::

महाराजा खुमाण विक्रमी संवत 95 में गढ़ हंसार के राजसिंहासन पर बिराजे इनके 25 रानिया थी तुंवर राजा की कुवरानी 3 सती हुई कुंवर पाटवी अरजन थे

 ::  135 महाराजा अरजन ::

महाराजा अरजन संवत 126 विक्रमी हंसार  राजसिंहासन पर विराजे इनके 10 रानिया थी चौहान राजा संभल की पुत्री अद्रावती सती हुई कुंवर जुजसेन  थे
::  136  महाराजा जुजसेन ::

महाराजा  जुजसेन गढ़ हंसार के सिंहासन पर विराजे इनके  5 रानिया थी इनके विवाह सिंध देश के जामध धवलसेन  पड़िहार की पुत्री सूरजकँवर से हुआ दूसरा जन्धेशाहर की सोलकियानी इराजा नकी 5  रानिया हंसार में सती हुई कुंवर गजसेन थे
::   137 महाराजा गजसेन ::

महाराजा गजसेन संवत 210 विक्रमी को गढ़ हंसार पर विराजे इनके  9 रानिया थी इनका विवाह पाटन देश सोलकियानी राजा जाम की पुत्री पूर्व देश की दूसरी पंवार हंसावती राणी थी चार रानिया सती हुई इनके पुत्र 1 शालिवाहन 2  परताप 3 गजहत 4 वजेराव थे महाराजा गजसेन ने अपने पुरखो की राजधानी गजनी को अपने अधिकार में लिया परन्तु पूरण  रूप से उस पर अधिपत्य जमा न सके मुसलमान राजा ने एक लाख सेना के साथ उनका सामना किया महाराजा गजसेन के पास उस समय तीस हजार यादव सेना थी वे वीरता के साथ युद्ध कर संग्राम भूमी में अपना पराक्रम दिखा कर स्वर्ग लोक को सिधारे  उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके भाई सहदेव ने कई महीने तक गजनी पर आधिपत्य कायम रखा परन्तु यवनों से तंग आकर अपनी कुल देवी की आज्ञानुसार अपने राजकुमार शालिवाहन को श्री ज्वालामुखी देवी की यात्रा के बहाने से प्रथम ही पंजाब प्रान्त भेज दिया वे अपने पिता व चाचा की म्रतियु के समाचार सुनकर अत्यंत दुखी हुए.

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