:: १३८ महाराजा सलिवाहन :;
१ कोन तृण से तुच्छ --- मांगन
२ कोंन काजल से काला --- कलंक
३ कोन लोहे से कठिन --- सूम
४ कोन सोने से श्रेस्थ --- सपूत
५ कोन बिच्छू पर डंक --- कुवचन
६ कोन मदाराते मातो --- काम
७ कोन रवी पर तेज --- ज्ञान
८ कोन अग्नि से तातो --- क्रोध
९ कोन दूध से उज्जवल --- जस
१० कोन जिभ्या अमृत भरी --- सज्जन
दोहा
क्या नहीं अग्न में जले कहा नहीं सिन्धु समाय
[ धर्म ] [मन ]
कहा न अवलाक रम के काल क्या नहीं खाय
[ पुत्र ] [नाम ]
कोन पुर्ष जननी बिन कोन मोत बिन काल
[अजय ] [नींद ]
कोन सागर पाल बिन कोंन मूल बिन डाल
[विध्या ] [पवन ]
क्या घी जेसी चोपड़ी क्या वालो वीरा
:: शालिवाहन पुर स्यालकोट का निर्माण ::
:: शक संवत को चलाना ::
:: गजनी पर अधिपत्य ::
महाराजा शालिवाहन ने सारे पंजाब में एक चत्रधारी हूओ.
:: अटक नदी पर गढ़ बनाया ::
:: छपय ::
कोकणद मण संध कांछ पंचाल नरंतर
सेत बंध रामेसर गोतव दीपा सायर
झाड़खंड मेवाड़ खंड गुजर वेरागर
बागड़ महिपड़ सहित खेड़पाव पाबाकर
मरुधर खंड आबू मंडल सहित पाल इढा हंसवे
सालिवाहन जोति सुपह भोम सो यादव भोगवे
Tags:
राजपूती पराकर्म