मथुरा से अपनी राजधानी कृष्णा जी ने द्वारिका में स्थापित की
: दुर्वासा द्वारा यादवो को श्राप :
एक दिन कोतुहल वस् बहुत से यदुवंशी बालको ने भगवान श्री कृष्णा के शाव नामक पुत्र को स्त्री बनाकर तथा उसके पेट पर बहुत से कपडे बांधकर पास में ही वन में तप करने वाले दुर्वासा आदि ऋषियों से पूछा की इसके क्या संतान होगी । दुर्वासा जी ने क्रोधित होकर कहा की इसके पेट में एक मूसल पैदा होगा जिससे सभी यादवो का नाश होगा इस श्राप को सुनकर बालक भयभीत हुए। एंड उन्होंने तुरंत द्वारिका में आकर श्री कृष्णा जी को वृतांत सुनाया। श्री कृष्णा जी ने शाव के पेट पर लपेटे कपडे को हटाया तो उसमे ततक्षण लोहे का एक मूसल निकला जिसका चूरण करके समुन्द्र में दल दिया गया देववस् समुन्द्र की लहरों से बहकर लोह चूरण समुन्द्र के किनारे पर तीक्षण घास ( एरा ) के रूप में पैदा हो गई। एक दिन सूर्य ग्रहण के उप्लक्ष में वसुदेव एंड व्रज के सिवाय अबाल वृध यादव समुन्द्र में स्नान करने गए एंड वहा श्राप के प्रभाव से मदिरापान करके उन्न्मत होकर उसी तीक्षण घास के प्रहार से आपस में लड़ कर कट मरे ।
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