भारतवर्ष के क्षत्रिय वंश में यादव वंश {भाटी} जिसमे जन्म होने का मुझे गर्व है । एक प्रसिद्ध राजवंश माना जाता है । इसी चन्द्र वंस में महाराजा यदु हुए तथा भगवान श्री कृष्णा का महान अवतार हुआ जिसके कारण यदु वंश को ३६ वंशों में से निकलंक माना जाता है । हमारे पूर्वजो ने अनेक परमपुनित विरोचित कार्य करके भारत के उतरी पश्चमी भाग जम्मू कश्मीर से अफगानिस्तान के गजनी तक 5000 वर्षों से शासन करते चले आ रहे है । और अपने बाहुबल से कई गढ़ और राजधानिया स्थापित की अत्रि ने मद्र देश {रूस } तक अपना शासन स्थापित किया जिसके प्रमाण रूस में अत्रेस नामक पहाड़ तथा अत्रि नामक नदी में आज भी विधमान है जिसका उलेख वंयम रक्षाम आचार्य चतरसेन द्वारा लिखित पुस्तक में मिलता है जो वेदों से लिखी गई है । लेखक की रूचि आरंभ से ही इतहास तथा विशेष रूप से उनकी जन्मभूमि जैसलमेर की सम्पूरण ऐतिहासिक यात्रा में रमी है अतः लेखक गोपाल सिंह भाटी तेजमालता ने सन 1959 से ही यदुवंसियो से सम्बंधित इतिहास ख्यातो का अध्यन करते आ रहे है । उनको यदुवंशियों से समबन्धित इतिहास व् ख्यातें अव्यवस्थित व् अधूरी लगी तब । जैसलमेर के भाटी शासक और उनके पूर्वजो के इतिहास को क्रमबंध करने की तमन्ना जाग्रत हुई किन्तु ५००० साल के इतिहास को क्रमबद्ध करना एक अति जटिल समस्या थी इसके लिए सन 1959 se 2002 तक 42 साल यदुवंसियो से सम्बंधित जितने भी इतिहास ख्याते और पत्र पत्रिकाए मिली उनका सतत अध्ययन करके शोध कार्य प्रारंभ किया
भारतवर्ष के क्षत्रिय वंश में यादव वंश {भाटी} जिसमे जन्म होने का मुझे गर्व है । एक प्रसिद्ध राजवंश माना जाता है । इसी चन्द्र वंस में महाराजा यदु हुए तथा भगवान श्री कृष्णा का महान अवतार हुआ जिसके कारण यदु वंश को ३६ वंशों में से निकलंक माना जाता है । हमारे पूर्वजो ने अनेक परमपुनित विरोचित कार्य करके भारत के उतरी पश्चमी भाग जम्मू कश्मीर से अफगानिस्तान के गजनी तक 5000 वर्षों से शासन करते चले आ रहे है । और अपने बाहुबल से कई गढ़ और राजधानिया स्थापित की अत्रि ने मद्र देश {रूस } तक अपना शासन स्थापित किया जिसके प्रमाण रूस में अत्रेस नामक पहाड़ तथा अत्रि नामक नदी में आज भी विधमान है जिसका उलेख वंयम रक्षाम आचार्य चतरसेन द्वारा लिखित पुस्तक में मिलता है जो वेदों से लिखी गई है । लेखक की रूचि आरंभ से ही इतहास तथा विशेष रूप से उनकी जन्मभूमि जैसलमेर की सम्पूरण ऐतिहासिक यात्रा में रमी है अतः लेखक गोपाल सिंह भाटी तेजमालता ने सन 1959 से ही यदुवंसियो से सम्बंधित इतिहास ख्यातो का अध्यन करते आ रहे है । उनको यदुवंशियों से समबन्धित इतिहास व् ख्यातें अव्यवस्थित व् अधूरी लगी तब । जैसलमेर के भाटी शासक और उनके पूर्वजो के इतिहास को क्रमबंध करने की तमन्ना जाग्रत हुई किन्तु ५००० साल के इतिहास को क्रमबद्ध करना एक अति जटिल समस्या थी इसके लिए सन 1959 se 2002 तक 42 साल यदुवंसियो से सम्बंधित जितने भी इतिहास ख्याते और पत्र पत्रिकाए मिली उनका सतत अध्ययन करके शोध कार्य प्रारंभ किया