प्राचीन किले में स्थान

प्राचीन किले व् स्थान जिनका उल्लेख गजनी टू जैसलमेर बुक में आया हे

१.मथुरा -राजा राम के छोटे भाई शत्रुध्न ने इसे बसाई थी , बाद में राजा आयु सोमवंशी की यह राजधानी रही | इसके आसपास के क्षेत्र को सूरसेनी नाम से जाना जाता था | कालान्तर में यह श्री कृष्णा जी यदुवंशी की राजधनी रही |

२. पेशावर -राजा राम के छोटे भाई भरत ने इसे बसाई थी और अपने राजकुमार पुष्कल के नाम से इसे पुश्क्ल्वती नाम दिया | बाद में पेशावर इसका अप्भ्र्संश हो गया ,जो आज भी है | अनेक वर्षों तक यह यदुवंशियो की महत्वपूर्ण राजधानी रही |

3.कन्नोज -यह अति प्राचीन नगर था जो राजा ययाति के राजकुमार अनु सोमवंशी की राजधनी रहा | पूर्व -मध्यकाल में इसकी ऐतिहासिक महता सदेव बनी रही |


४.प्रयाग -यह अति प्राचीन नगर था जो अनेक पीढियो तक सोमवंशी राजाओं की राजधानी रही | राजा ययाति ने अपने छोटे राजकुमार पुरु को इसे राज्य के उतराधिकार में दिया |


5.मुल्तान -यह एक प्राचीन नगर था जिसके विभिन्न कालों में भिन्न-भिन्न नाम रहे -मूलस्थान,कश्यप्पुर,हंसपुर ,भागपुर ,सांभलपुर ,प्रह्दपुर ,आदि | कहते हे की अद्तीय एवं देत्यो के पिता ऋषि कश्यप ने इसे बसाया था ,इसलिए इसे कश्यपपुर कहा गया | श्री कृष्णा के राजकुमार साम्ब ने यहाँ का सुप्रसिद्ध सूर्य मंदिर बनवाया था | जिसे कालान्तर में भट्टीरिका मंदिर. भाटियों का मंदिर नाम से जाना गया |


6.द्वारिका -प्राचीन काल में राजा इक्ष्वाकु के राजकुमार आन्वित ने इसकी स्थापना की थी | इसे द्वारवती ,कुशस्थली ,जगतकुंट भी कहते थे | श्री कृष्णा ने यहाँ भव्य नगर बसाकर इसे अपनी राजधानी बनायी | उनके अन्तर्धान के थोड़े समय बाद में यह अरब सागर में समां गयी ,अब उत्खनन में इसके अवसेश प्राप्त हुए है |


7.गजनी -युद्धिष्ठर संवत 308, बैसाख सुदी तीज (आखातीज ),रोहिणी नक्षत ,रविवार (2590 ई.पू) के दिन इस किले का निर्माण प्रारंभ करवाया गया था | श्री कृष्णा से आठवें यदुवंशी शासक गजबाहू ने गुरु गर्गाचार्य से भूमि मांगकर यहाँ नया किला बनवाया | राजा बालबंध भाटी के पिता श्री (सन 227-79ई.) यहाँ के अंतिम यदुवंशी शासक थे बाद में इन्ही से भाटी वंश की नयी साखा चली | राजा बाल्बंध (सन 361-99ई.) यहाँ के प्रथम भाटी शासक हुए ,और गज्जू भाटी (सन 468-77इ.)यहाँ के अंतिम भाटी शासक रहे |


8.लाहोर -यह प्राचीन नगर था जिसे राजा राम के राजकुमार लव ने बसाया था | इसका प्राचीन नाम लोहावर था ,इस नाम से कालांतर में मंगोल और मुगल इसे लाहोर कहने लग गए | यहाँ पर यदुवंशीयों और भाटियों की राजधानी रही |


9.शालिवाहनपुर -राजा शालिवाहन ने वि. संवत 251 ( सन 194 ई.) में लाहोर के पास यह किला बनवाकर नगर बसाया | टांड के अनुसार वि.सं. 72 आठ भादों ,रविवार (सन 016 ई)
के दिन शालिवाहनपुर के किले का निर्माण आरम्भ किया गया था लगातार. 


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