भानिदास जैसा भाटी

भानिदास - 
               वीरमदे का द्वित्य पुत्र भानिदास राव चंद्रसेन की सेवा में रहे | राव चंद्रसेन जब बालरवा गाँव में रहे तब थे तो उसने थोरियों से लड़ाई की उस समय भानिदास मारे गए | इसके पुत्र भाखरसी को पहले चेराई फिर वि.सं.१६७७ में बेरू गाँव मिले परन्तु वह पट्टा छोड़कर संवत १६९३ में राठोड़ अमरसिंह के पास चले गए | इसके पुत्र जगन्नाथ को वि.सं.१६९५ को गोलावासणी गाँव मिला | भाखरसी का दूसरा पुत्र अमरा व् तीसरा सादूल व् चौथा जैतमाल हुए | सादूल के दो पुत्र सबला व् भावसिंह |

भानिदास के दुसरे पुत्र सांवल दास को वि.सं.१६६१ में त्रिगठी ,वि.संवत १६६५ में बर्मावासनी और वि.सं.१६६६ को सांवतकुआ मिला | सांवलदास ने बाबरा के पास आधा कोस की दूरी पर ऐक नदी के किनारे हीयादी का वास बसाया | बाबरा जोधा राठोड़ो का ठिकाना था | बाबरा के ठाकुर प्रतापसिंह के समय भाटी शंकरदास वि.सं.१७४५ (१६६८ई) में यहाँ आकर बसे | यहाँ पर भाटियों को 200 बीघा भूमि फौजदारी का दायित्व निभाने के लिए दी गयी जिसका उपयोग वह पीढ़ी दर पीढ़ी करते रहे | जसरूपसिंह व् बाद में जीवराजसिंह लुटेरों से लड़ते हुए काम आये | इनके स्मारक बाबरा में आज भी विध्यमान है |

वि.सा.१६७० में कंवर गजसिंह और गोविन्ददास भाटी ने कुंभलमेर पर अधिकार किया | उस समय महाराणा की सेना से लड़ते हुए सांवलदास काम आये | तत्त्वपश्चात् इसके पुत्र वाघ को त्रिगठी गाँव मिला | भानिदास के तीसरे पुत्र नहरदास को वि.सं.१६६३ में भांहरो ,वि.सं.१६७३ में सोजत का चाँवड़ीया ,वि.सं.१६७४ में बोळ और वि.सं.१६८१ में जूठ गाँव मिला | फतेपुर के निकट सीसरोधी गाँव में लुटेरे की गढ़ी पर आक्रमण करने के लिए वि.सं.१६८४ में जोधपुर से सेना भेजी गयी | नरहरदास ने गढ़ी हस्तगत करने में वीरता का परिचय दिया और भगवानदास राठोड़ के साथ मारा गया | इसके तीन पुत्र हुए रामचंद्र ,रघुनाथ ,करमचंद | रामचंद्र को जूठ गाँव मिला परन्तु वह पट्टा छोड़कर राठोड़ अमरसिंह के पास चला गुआ | इसका पुत्र करन हुआ.


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