200 महारावल गजसिंह ( भाटी 61) १८१९ई. कुटिल सालमसिंह की हत्या ओर बीकानेर जैसलमेर का अंतिम युद्ध

 :: महारावल गजसिंह ::


महारावल गजसिंह वि.सं.१८७६ कार्तिक सुदी ५ को जैसलमेर के राजसिहासन पर विराजे | इनके ७ रानिया थी |
१.ठा. सरुपसिंह सोढा की पुत्री मोतिकुंवर २.सोभागसिंह कोटडिया की पुत्री ३.जयसिंह सोढा की पुत्री हरिया कंवर ४.भीमसिंह बाड़मेरा की पुत्री सुरजकंवर बाड़मेर ५ गढ़ उदयपुर के राना भीमसिंह सिसोदिया की पुत्री रूपकंवर ६ कानोना के ठा.भोमकरण करनोत की पुत्री सहिबकंवर ७.ठा.सादुलसिंह सोढा की पुत्री से विवाह हुए | महारावल गजसिंह जी पाठ विराजे तब उनकी उम्र ५ वर्ष की थी | कुटिल मंत्री सालमसिंह ने बालक गजसिंह को महारावल बनाकर अपने को पूर्ण स्वतन्त्र माना |




इसने अपने पक्ष के हि मनुष्यों को इनके पास रखा और महारावल के युवा होने पर इनका विवाह उदयपुर के महाराणा भीमसिंह की कन्या रूपकंवर के साथ किया |
सालमसिंह उदयपुर के महाराणा भीमसिंह के पास सन १८२० में प्रस्ताव भेजा रस्म के अनुसार महाराणा ने नारियल भेजा जिसे स्वीकार कर लिया गया | इस प्रकार राजकुमारी रूपकंवर से महाराणा गजसिंह का विवाह तय हुआ महाराणा की ऐक अन्य कन्या किशनगढ़ के राजकुमार मोकमसिंह और दूसरी राजकुमारी अजबकुंवर का विवाह बीकानेर के राजकुमार रतनसिंह से होना निश्चिन्त हुआ |
अचानक ऐक दिन विवाह का सुगन आया | महारावल गजसिंह उस दिन देवीकोट ग्राम गए हुए थे | पांचवे दिन पणीग्रहण था | इतने कम समय में बारात सजा कर ले जाना मुश्किल था यही तय हुआ की महारावल देवीकोट से हि उदयपुर प्रस्थान जाएँ बारात पीछे आ जाएगी | बारात ऐक दो दिन देर से भी पहुँच जाये तो भी कोई बात नहीं | विवाह का मुर्हुत न निकल जाये देवीकोट सन्देश पहुँचते हि महारावल अपने साथियों के साथ उंठों पर हि उदयपुर चल पड़े |  
महारावल मुर्हुत से दो दिन पूर्व अपने सात साथियों सहित उदयपुर पहुचे सारा शहर दुल्हन की तरह सजा हुआ था | जगह -जगह पर स्वागत द्वार बने थे | बंधन वार सजे थे | नगर के प्रमुख रास्तों पर बारात के स्वगत में फूलों की छतें बनायीं गयी | मंगल गीत गाये जा रहे थे | फूलों से सजी नावें झील में तेर रही थी | सारा वातवरण पलक पवाडे बिछाए खड़ा था |
बीकानेर और किशनगढ़ से कई बारातियों के साथ सजी धजी बारातें शहनाईयों ,नोबत बाजों के सहित पहुंची उनका सारी जनता ने भव्य स्वागत किया | मगर जैसलमेर के महारावल चुपचाप आ गए थे | न बारात थी न शानोशोकत सिर्फ सात ऊंट उस पर सात बाराती | यह भी कोई बारात हुयी जैसलमेर का जानी डेरा (बारात का पांडाल ) सुना था जबकि जबकि बीकानेर और किशनगढ़ के जानी डेरों में खूब चहल -पहल और गहमा गहमी थी | ये दोनों डेरे हाथी ,घोड़े ,ऊंट रथपालकी से सुशोभित थे | जैसलमेर के डेरे पर मात्र सात ऊंट चारा खा रहे थे | 
दिन में श्री गणेश पूजन एवं तेल चढाने की रश्मे हुयी | शाम को महफ़िल सजी बीच में सबसे ऊपर उदयपुर के महाराना भीमसिंह का सिंहासन था | उनके दायीं और तीन आसनों पर तीन दुल्हे विराजमान थे | इनके बाद आमत्रित अतिथि राजा महाराजा ,राजकुमार चांदी की कुर्सियों पर बेठे थे | नीचे मखमली ईरानी कालीन बिछा था | चारों तरह सोने चांदी के महीन काम वाली झालरे लटक रही थी | सोने के जाम जिन पर हीरे पन्ने जड़े हुए थे | पेश किये जा रहे थे | साथ में कला व् सूखा मेवा ,मुरगे व् पनीर के पकोड़े आदी परोसे गए थे | आकाश के तारे नीचे उतर आये और बंधी रस्सियों से लटक गए | झिलमिलाती रौशनी में तारों में कदम रखे जेसे लोग स्वर्ग में पहुँच गए थे | चम्पा ,चमेली ,केवड़े की खुसबू से पंडाल सरोबार था | ऐसे में दूर -दूर से नाचने के लिए ऐक से ऐक नामी -गिरामी न्रत्कियों ,गणिकाओं को आमंतरित किया | ये अपनी भाव-भंगिया ,हाव-भाव और मस्त -पद संचालन से कहर ढा रही थी | सोने के हर ,मोतियों की माला ,हीरे की अंगूठिय ग्रहण करती उसका गहरा श्रंगार बिखरने लगा | सारा वातावरण नशे में चूर हो गया |
ऐसे में बीकानेर के राजकुमार रतनसिंह ने गजसिंह से पूछा ''क्यूँ महारावल सा कभी देखि नहीं ऐसी महफ़िल ''
गजसिंह मुश्कारा दिए |
किशनगढ़ के राजकुमार मोहकमसिंह से बोले , ''महफ़िल की बात करते हो आप | 
जैसलमेर में पानी भी मिल जाये तो बहुत है , हुकुम |''
'' आप दोनों को हम आमंत्रित करते है | आप वहां पधारे | आप जो चाहोगे हाजिर हो जायेगा .......|
''क्या हाजिर करोगे रावल सा | अंगूर ,सेव गुलाब की शराब या गोवा की काजू फेनी |'' 
रतनसिंह हिकारत से मुस्कराए |
कुंवर मोहकमसिंह हँसे | ''ये हाजिर करेंगे रेत , रेत के सिवाय वहां हे क्या ? ''
'' पड़े हे ऐक तरफ निर्जन उजाड़ में अकेले |'' रतनसिंह ने फिर ठिठोली की |
रावल ने घूंट पीकर कहा , '' निर्जन में अकेला रहता हे तपसी या शेर | समझे हुकुम | ''
'' आप क्या हे तपसी ?''
''नहीं ,नहीं | विवाह रचाने आये है | ये शेर है शेर |''
अब रावल के सब्र का पैमाना छलक गया | गुस्से से लाल हो गए और हुनकर कर उठे और तलवार खिंच कर बोले , ''हाँ शेर हे शेर | इस भरी महफ़िल में सारी धरती के राजा महाराजा और शूरवीर विराजे है | हम चुनोती देते है की हो किसी में शेर का कलेजा तो आये सामने | हिंजड़े की तरह हंसी ठिठोली करने से कुछ नहीं होता | राजपूत का खून तो जुबान से नहीं तलवार से मुकाबला करे |''
सारी महफ़िल में खलबली मच गयी | गनिकाएं बाइयों की गोद में जाकर कांपने लगी | तारों और दीयों का सारा प्रकाश रावल के चेहरे पर केन्द्रित हो गया | रावल की नंगी तलवार कोंध रही थी | क्षण भर को सभी कुछ थम गया |
महारावल भीमसिंह को कुछ समझ में नहीं आया | यह क्या हो गया अचानक |
'' शांत हो जाईये महारावल सा | क्या बात हो गयी ?''
''आजकल राजपूत किन्नरों की भाषा बोलने लगे हे हुकुम | पर हम तो भाटी राजपूत है हम नहीं तलवार बोलती है |''
''कोन किन्नरों की भाषा बोल रहा है महारावल सा |''
आपके यह दोनों पावणे हुकुम | हम काफी देर तक सुनते रहे ,सहन करते रहे | पर हमारी मात्र भूमि का अपमान हम कभी बर्दास्त नहीं कर सकते | हमारे पूर्वज ने जिसके लिए साके किये | हम उस जन्म भूमि के खिलाफ ऐक अक्षर नहीं सहन कर सकते |;'
महारावल का कोप जरा भाई कम नहीं हो रहा था | तलवार लिए अडिग खड़े थे |
''यह तो आपने ठीक नहीं किया | इस तरह गलत और हलकी बातें आप दोनों को शोभा नहीं देती | महारावल का क्रोध जायज है |''
शाहपुराधीश अपने आसन से उठे और दोनों कुमारों की तरह मुखातिब होकर बोले |
महाराणा को लगा की मामला गंभीर है | उन्होंने बीकानेर और किशनगढ़ नरेशों से आग्रह किया की वे अपने कुमारों से शांत बेठने को कहे | महाराणा अपने आसन से उठकर महारावल के पास गए और उनसे तलवार म्यान में डालने की प्राथना की | साथ हि उनको पहुंची ठेस के लिए क्षमा याचना की | तभी महारावल शांत हुए तलवार म्यान में रखी | वे उन्हें आपने साथ ले गए और बायीं तरह के आसन पर बिठाया |
मगर इस घटना के बाद महफ़िल बिखर गयी | उनके बीच महाराणा के साले और ग्वालियर राजकुमार सियाजीराव ने अपनी शंका रखी , ''क्षमा करें ,जब बात उठी हे तो इसका समाधान होना हि चाहिए की महारावल बिना बारात के यहाँ क्यूँ पहुंचे ? जब वहां प्रजा की कमी नहीं है तो क्या धन की कमी है ?''
''हमारे यहाँ किसी की कमी नहीं हुकुम | जब आपका सन्देश आया तब अपनी रियासत में गए हए थे | गणेश स्थापना और तेल चढ़ने के मुर्हुत के अनुसार हमें जल्दी पहुंचना था इसलिए हम कुछ सवारों के साथ आगे रवाना हो गए थे | बारात ऐक -दो दिन में बारात पहुँच जाएगी |
''क्षमा करें महारावल | हम अपनी भांजी ब्याह रहे है ,हमें आपकी स्थति का पता होना चाहिए |'' सियाजिराव ने सफाई दी |
''कहीं ऐसा तो नहीं की महारावल मूलराजजी के समय खजाना खाली हो गया हो |'' बीकानेर नरेश ने कहा |
''सुना हे वहां का दीवान सालमसिंह दोनों हाथ से खजाना लूट रहा है | उसने काफी धन कलकते भेज दिया है | रैयत पर जुर्म कर रहा है |'' झाला नरेश ने कहा |
''आप लोग चिंता न करें | राज्य हमारा हे हम जानते है केसे चलाये | रही बात महारावल सा की तो उन्होंने अपनी निबाह ली | पूर्वजों की बुराई न तो हम करते है और न हि सुनते है |'' महारावल गजसिंह ने सफाई दी |
'मगर हमारा संशय तो अपनी जगह कायम हे महाराणा सा |'' सियाजिराव का स्वर कड़वा हो गया तो महारावल झुंझला उठे ,'' हमारे कहे की क़द्र नहीं है तो प्रमाण लीजिये | आज आप सब राजे -महाराजे बिराजे है और हम भी आपके पास उदयपुर में है | राज के खजाने की बात छोडिये | हमारी रैयत हि इतनी धनवान है की आप सोच भी नहीं सकते |''
''अच्छा |'' ऐक व्यंग भरा स्वर आया |
''हाँ | हम ऐक परवाना लिख रहे है | जैसलमेर से पांच कोस दूर कुलधरा गाँव है | हम उस गाँव के साधारण आदमी जसरुपजी पालीवाल के नाम हुक्मनामा दे रहे है | इसमें रकम की जगह खाली है आप भर ले | आप जितनी चाहोगे उतनी मोहरें आपको मिल जाएगी | ऐक बात और कहूँ उन्हें कहीं से लानी नहीं पड़ेगी | वहीँ अपने घर से निकाल के देंगे | हम यह भी लिख देते हे अगर कहीं जसरुपजी बहार होंगे तो कोई भी वासिन्दा इस चिट्टी को सिकारे और अपने पासे से उतनी मोहरें हलकारे को दे दे |'' महारावल ने जोश में आकर कहा तो कईयों के चेहरे पर उपहास सी भरी मुस्कराहट तैर गयी | ऐक दुसरे के सामने टेड्डी भोंहों से देखा | तुरंत परवाना लिखा दिया | महारावल के हस्तगत हुए | खाली जगह पर सियाजिराव ने ऐक लाख स्वर्ण मुद्राएँ लिख दिया | महारावल के चेहरे पर कोई शिकन नहीं था | तुरंत चार घुड़सवार जैसलमेर की तरह उड़ चले | महाराणा को सब अच्छा नहीं लगा मगर थूक का घूंट पीकर रह गए |
तीसरे दिन जैसलमेर से बारात उदयपुर पहुंची | लगभग पांच सो आदमी थे | स्वागत के बाद शहर के बीच से लवाजमा निकला | सबसे आगे मंग्नियारो का ऐक दल शहनाई और गाजों-बाजों के साथ चल रहा था | उसके बाद दीवान सालिमसिंह सहित कई ठाकुर ,नगर सेठ और रियासत के नामी-गिरामी लोग थे | दोनों तरह मकानों से पुष्प वर्षा हो रही थी | सारा शहर छतों पर उमड़ आया था | बारातें तो बहुत देखि पर ऐसी नहीं |
जैसलमेर का जानी डेरा छोटा पड़ गया | नए तम्बू लगाये गए | रौशनी की व्यवस्था की गयी | ऐसा लगता था की जैसे ऐक छोटा सा शहर बस गया | डेरे के चारों दरवाजों पर मांगनियार शहनाई बजा रहे थे | जगह -जगह सजावट की गयी थी | कलाकार ख़ुशी ,मरुधरा व् जैसलमेर की गीत गा रहे थे | लोग जैसलमेरी गोल पोतिया ,घास और दाना -पानी की विशेष व्यवस्था थी | इस बारात और ठाठ -बाठ को देखकर सारी शंकाएं समाप्त हो गयी महाराणा निश्चिन्त हुए |
अभी विवाह कार्यकर्म चल हि रहे थे ठीक पांचवे दिन चारों घुड़सवार ऐक लाख स्वर्ण मुद्राएँ लेकर वापिस लोटे | महाराणा ने खास-खास लोगो को दरबार में आमत्रित किया | उन सबके सामने हल्कारें ने ऐक लाख स्वरण मुद्राएँ पेश की | उन्होंने जो कहानी सुनाई वास्तव में आश्चर्यजनक थी | 
रात में उदयपुर से रवाना हुए घुड़सवार तीसरे दिन जैसलमेर पहुंचे | सूर्यास्त होने को था | दूर से किले की भव्यता को देख वे चकित रह गए | लम्बे समय व् थकावट के बाद उन्हें लगा की जैसे वे किसी आश्चर्यलोक में पहुँच गए थे | पीले पत्थर पर पड़ती रश्मियाँ स्वरण दुर्ग का आभास दे रही थी | निनानवें बुर्जों व् विशाल ऊँचा व् भव्य दुर्ग आकाश में सर उठाये किसी आकर्षक योद्धा की तरह खड़ा है | दूर से घर आ रही मवेशियों से धूल की चादर तन आई थी | यह चादर किले से नीचे शहर को ढके हुए थी | इस चादर पर साँझ के चूल्हों का धूंआ तैर रहा था | किले के कोटरों से कबूतरों के झुण्ड अविकल उड़ाने भर रहे थे | धूल और धुंए की छत के पार ऊपर देखने पर लगता था जैसे किले और हवेलियों के सर आकाश में गुम हो गए है |  पशुओं के गले की घंटियों और ग्वालों के हुमकारें वातावरण में संगीत भर रहे थे | उन्होंने शहर के दो -तीन चक्कर लगाये | रात गुजारने के लिए किसी सराय का पता पूछा 
'' मेवाड़ी हो |''
वे लोग चकित रह गए | बाबा आपको केसे पता चला ?''  कहीं इन्हें सूचना तो नहीं मिल गयी ? वे सोचने लगे |
'' आपकी पगड़ी के पेच और बोली से |'' बुड्ढा बोला '' यहाँ सराय नहीं है | यह भूरिया बाबा की मठ है | वहीँ जाकर रात बासा करो | कहाँ जाना है ?''
कुलधरा किस तरह है ?''
ये उस पहाड़ी की सीध में चले जाना | पांच कोस पर है | किसके यहाँ जाना है ?'' बाबा ने फिर पूछा |
वे चुप रह गए | उन्हें भय था की रातों रात वहा समाचार न पहुँच जाए और वे लोग इंतजाम कर ले साथ हि ऐक लाख मुद्राओं की वजह से उनकी जान को भी खतरा न हो | उन्होंने बाबा को अनसुना कर मठ का रास्ता लिया |
मठ में भोजन और बिस्तर मिल गए | घोड़ों को दाना पानी | सुबह होते हि कुलधरा की और निकल पड़े |
सूर्य की पहली किरन होते हि कुलधरा पहुंचे | बहुत हि सुन्दर गाँव | पहली बारीस की खुसबू से सरोबर | मवेशियों के झुण्ड वन में चरणों जा रहे थे | गायें उछेरने आये स्त्री -पुरुष कोतुहल से घुड़सवारों को देख रहे थे | गाँव के पश्चमी दिशा में नदी पर बने घाट पर आकर चारों घुड़सवार उतरे | घोड़ों को पानी पिलाया | बरसाती नदी में काफी पानी था | घाट पर कई लोग नहा -धो रहे थे | गाँव के चारों तरफ हरियाली और प्रचूर जलराशि को देखकर उन्हें मेवाड़ी गाँवो की याद आ गयी |
उन्होंने ऐक अधेड़ व्यक्ति से जसरूजी पालीवाल के घर का पता पूछा | उस आदमी ने उन्हें ऊपर से नीचे तक तोला | ''कहाँ से आये हो ?'' पहला सवाल |
''उदयपुर से |''
''आगे ?'' दूसरा सवाल |
''यहीं तक |जसरुपजी से मिलना है |''
''क्यूँ ?'' उनसे जान पहचान है ?''
''नहीं उनके लिए ऐक सन्देश लाये है |''
''कहाँ से?''
''उदयपुर से |''
''केसा सन्देश ?''
''वह हम उन्हें देंगे |''
''वापस ?''
''आप घर बताइए | हम उनसे मिलाना चाहते है |''वे लोग झुंझला गए | कैसे लोग है | जिनसे मिलो सवाल दर सवाल पूछता हि चला जाता है |
'' चलिए |'' वह आदमी संकरी गली में जिसमे वे ऐक ऐक कर घोड़े सहित निकल सके ,लेकर चल पड़ा | उन्होंने देखा सारा गाँव उतर से दक्षिण की तारा आरपार निकलती चार लम्बी चोडी गलियों में बंटा था | इन गालियों को जोडती हर चार गाँव योजनाबद्ध तरीके से बसाया गया था | वह उन्हें भव्य राम मंदिर के उतर में बनी छतरी के पास ले गया | यहाँ बड़ा चोक था | यह हिस्सा गाँव के मध्य में बना हुआ था ?| इसी के पास ऐक साधारण से मकान पर जाकर उसने पुकारा | उन लोगो ने सोचा था जिसके पास ऐक लाख स्वर्ण मुद्राएँ है उसका मकान अत्यंत साधारण था | तब वे अन्दर गए तो उन्होंने महसूस किया की इसमें आवश्यकता की सारी सुविधाएँ मौजूद है | सारा घर साफ -सुथरा और सुरुचिपूर्ण था |
ऐक व्यक्ति घास की कुतर करता हुआ बहार आया | उसका शरिर कपडे घास से भरे हुए थे | वह उत्सुकता से उन्हें देखते हुए बोला ,'' क्या बात है ?''
''पाय लागूं बासा | ये लोग उदयपुर से आये है और आपसे मिलना चाहते है |''
उस व्यक्ति ने कहा |
वे समझ गए की यही जसरुपजी पालीवाल है | उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था की यह कुतर करने वाला पशुपालक किसान ऐक लाख स्वर्ण मुद्राएँ कहा से लायेगा | मगर कहना तो पड़ेगा हि | अभिवादन कर कहा ,'' हम लोग उदयपुर से आये है | आपके महारावल ने यह पत्र आपके नाम दिया है |''
पत्र व् मोहर आदी ध्यान से देखकर जसरुपपजी बोले,'' मगर दाता ने यह इसमें की कोंसी स्वर्ण मुद्राएँ चाहिए | आप अन्दर पधारें |'' वहां उन्हें तहखाने में ले गए |तहखाना देखकर वे लोग आश्चर्यचकित रह गए | कई घड़े ,हीरे =माणक -मोटी , सोना -चांदी के सिक्कों से भरे हुए थे | उन्होंने अपने जीवन में पहली बार इतनी दौलत देखि थी | उनके भोंच्च्केपन को जसरुपजी ने तोड़ा , ''इनमे बादशाही ,अखेशाही ,ईरानी ,तूरानी कई तरह की स्वरण मुद्राएँ है \ आप किसी भी ऐक तरह की ऐक लाख मुद्राएँ गिनकर ले लें | में तब तक आपके भोजन का इंतजाम करता हूँ |
दोपहर तक चारों ने पच्चीस -पच्चीस हजार कर ऐक लाख स्वर्ण मुद्राएँ गिनी | इसी बीच पानी ,लस्सी ,छाछ ,दूध मिलता रहा | चार अलग -अलग बोरों में भरकर उसकी अच्छी तरह से सिलाई कर | काम ख़त्म कर भोजन किया | और विदा हुए |
सारा गाँव उन्हें अजूबे की तरह देख रहा था | वे पत्थर के बने घरों ,चोड़ी गालियों रंग -बिरंगी पनघट और मावे ,दूध ,,छाछ की गमक से भरे गाँव से होते हुए बाहर निकले | और उदयपुर की तरह चल दिए |
अपनी बात समाप्त कर हलकारों ने बोरे सबके सामने खोल कर रखे तो सभी चकित रह गए | दमकती स्वर्ण मुद्राओं ने सबके चेहरों पर उजाला कर दिया | महाराणा आज विशेस प्रसन्न थे | उन्होंने सियाजिराव की तरफ दर्प से देखा | सियाजिराव गर्दन हिलाकर रह गए | किशनगढ़ महाराजा ने महारावल गजसिंह से सवाल किया ,'' माना की आपके राज्य में भरपूर धन-दौलत है | आपकी प्रजा भी संपन्न है | तो अकाल के समय इस धन का उपयोग क्यूँ नहीं होता | जिस राज्य के पास इतना धन दौलत हो वहां अकाल का असर नहीं होना चाहिए |''
''आप ठीक कहते हो मगर जैसलमेर में दूर -दूर तक पानी नहीं है | इस धन से भी कोसों दूर तक पानी लाकर पिलाना संभव नहीं है | मीलों रेगिस्तान है | उसमे लाखों की संख्या में मवेशी है | उस दुर्गम इलाके में पानी भर ले जाना मुश्किल हि नहीं असंभव है | फिर पानी के श्रोतों भी सूख जाते है | घास ख़त्म हो जाती है | ऐसे समय में सभी लोग अपनी मवेशी लेकर पानी के स्रोत पर पहुँच जाते है | जहाँ मवेशी भी बचे रहते है और खुद भी |''
'' इतने धन से तो नहर निकाली जा सकती है |''
'' उन धोरों में नहर निकालना अभी तो असम्भव है | भविष्य में कभी निकले तो अलग बात है |'' महारावल ने कहा |
इन स्वर्ण मुद्राओं को अपने पास रहे महारावल |'' महारावल बोले |
'' नहीं यह धन आपका मंगवाया हुआ है | अब इस पर हमारा कोई अधिकार नहीं | इसे आप रखें |'' महारावल ने कहा तो महाराणा ने बात काटी ,'' यह बेटी का घर का है , हम केसे रख सकते है |''
तो ब्राह्मण को दान दें |
अगले दिन महाराणा भीमसिंह ने अपनी पुत्रिया कीकाबाई का कुंवर मोहकमसिंह किशनगढ़ ,और अजब्कुंवर का रतनसिंह बीकानेर तथा स्वरुप्कंवर का महारावल गजसिंह के साथ विवाह समाप्त हुए |
रूपकंवर सबसे छोटी थी तो उनके फेरे लास्ट में होने थे | सभी बाराती चौक में बेठे थे सालमसिंह सहित जैसलमेर के सभी बाराती भी मग्न होकर गजसिंह के फेरों की रश्म देख रहे थे | अचानक ऐक जूता ऊपर से फिसला | वह सीधा दीवान सालमसिंह की तरह आ रहा था की ऐक तलवार चमकी | पलक झपकते हि जूते के दो टुकड़े कहीं जाकर गिरे | सभी चकित होकर देख रहे थे | सालमसिंह ने कृतज्ञ से देखा | ऐक वीर नोजवान जैसलमेर के खेमे में हि था अपनी तलवार म्यान में डाल रहा था | सालमसिंह ने आँखों -आँखों में धन्यवाद दिया | युवक विनम्र हुआ |
वैवाहिक रस्में पूरी हुयी दीवान सालमसिंह ने बुजुर्ग होने के नाते चंवरी बरसाने का दायित्व निभाया | ऐक युवक कपडे की बड़ी गोथली में सोने की मोहरें लेकर खड़ा था | दीवान दोनों हाथो से मोहरें लेकर चंवरी में बरसाने लगे | सोने की बरसात देखकर लोग भोंचक्के रह गए | पहले तो महाराणा को अच्छा लगा | मगर बाद में उन्होंने देखा की बड़े -बड़े मोजिज लोग सोने की मोहरें उठा रहे है | उन्होंने दीवान से इसे रोकने का निवेदन किया | इससे लोगो की पद मर्यादा पर आंच आ रही थी |  मोहरों की उछाल रोक दी गयी |
रात में अपने वितान में दीवान ने उस युवक को बुलाया जिसने उनके मान की रक्षा की थी | युवक फुर्तीला था |
दीवान ने गोर से देखा और पूछा |
कोन हो तुम |''
'' राजपूत हूँ खिंया राजपूत ''
क्या नाम हे तुम्हारा ?''
''आना ,हुकुम आना भाटी |''
''तुमने मेरे मान की रक्षा की है | तुरंत बुद्धि और कोशल; का प्रदर्शन जो तुमने किया में उससे अभिभूत हूँ | आज से तुम मेरे अंगरक्षक हो | तुम्हे हमेसा मेरे साथ रहना होगा | तुम्हे मंजूर है |
'' देश दीवान की सेवा करना मेरा सोभाग्य होगा हुकुम |''
''तो अभी जाओ आराम करो | कल प्रातः आ जाना |''
''जो हुकुम |'' आना जुहार करता अपने शिविर मे चला गया |
वहाँ के सारे कार्यकर्म धूमधाम से हुये | अन्य बरातों के साथ ही जैसलमेर की बारात को भावभीनी विदाई दी |
समय फिर अपनी गति से भागने लगा | महरावल ने अपना सारा काम काज दीवान पर छोड़ दिया | यों कहे तो दीवान ने महरावल को राजकाज से दूर ही रखा था | महरावल रावले मे डूबे थे तो सालमसिंह का बुर्ज फिर आबाद हो गया | अब किसी को किसी की परवाह नहीं थी | न हवेली को सालमसिंह की | राजा व प्रजा की | न राजा को राज्य की | सभी कुछ अपने आप बहता चला गया ओर सबने खुद को बहाव के हवाले कर दिया था |
दो साल बीतते महारानी रूप्कंवर ने उदयपूर मे राजकुमार को जन्म दिया | जैसलमेर मे समाचार मिले तो खुसिया मनाई गयी | महारणा के विशेस आमत्रण पर महारावल उदयपुर चले गए | वहाँ से समाचार मिले की राजकुमार की तबीयत ठीक नहीं है | इलाज चल रहा है | समय लगेगा | जब तक राजकुमार स्वस्थ नहीं होते महरावल लोटना संभव नहीं हो पाएगा |
इसी बीच सूचना मिली की दीनगढ़ का अमीर फजल आली खान रेत के टीलों ओर मुश्किल जीवन से परेशान होकर दुर्ग छोड़ना चाहता है | सालमसिंह ने संदेश भिजवाया की अगर वह बेचना चाहता हे तो जैसलमेर उसे खरीद लेगा | फजल आली ने दीवान को दीनगढ़ बुलाया | बातचीत हुयी ओर सौदा चौहतर हजार रुपयों मे पट गया | जिसमे पचास हजार किले के ओर चौबीस हजार अन्य सामान के दिये गए | फजल अली खान किले का कब्जा सालमसिंह को सोंपकर सिंध चला गया | दीनगढ़ तनोट के पास था | उसका नाम बदलकर किशनगढ़ रखा गया | वहाँ एक हाकिम नियुक्त कर दिया | किशनगढ़ को रीयासत मे शामिल करने की रसमे अदा करने स्वयं सालमसिंह वहाँ गया |
इस महोत्सव के उपलक्ष्य मे मंत्री सालमसिंह ने अपार धन खर्च किया | इस प्रकार सालमसिंह अपनी मनमानी करने लगा | उसने दो करोड़ की संपति एकत्रित कर ली ओर अपने रहने के लिए विशाल भवन भी बना लिया | शनै-शनै  महरावल मंत्री की उदन्ड्ता से पूरन परिचित हो गए ओर उसके अत्याचारों से प्रज्ञा को दुखी देखकर उन्होने उसका वध करने के लिए भाटी आना को आज्ञा दी | भाटी आना ने मौका पाकर सालमसिंह पर अपनी तलवारों प्रहार किया जिससे उसके गहरा घाव हो गया | इतने मे ही सालमसिंह के अंगरक्षक उसको बचाकर घर ले गए | सलामसिंह 6 माह तक वेदना से पीड़ित रहे ओर अपने जीने की आशा छोड़ अपने संचित धन को सुरक्षित रखने के लिए अपने साले रूपसी तथा दूसरे भिखोड़ाई के चारण ब्राह्मणो आदि के साथ जैसलमेर राज्य से बाहर भेज दिया | परंतु वह धन राशि ले जाने वाले बीच मे ही हजम कर गए इस प्रकार वह कुटिल मंत्री द्रवय की जगह पाप राशि को अपने साथ ले स॰ 1881 विक्रमी चेत सुदी 14 को इस संसार से विदा हो गया | उसकी म्र्त्यु के अनंतर महरावल ने उसके पुत्र को किसी अपराध के कारण कारागार मे डाल दिया | इस समय मंत्री सलामसिंह के अनुयायियों ने ( जो भाटी व सोढा राजपूत थे ) राज्य मे काफी उपद्रव मचा रखा था किन्तु बुद्धिमान महरावल ने उन्हे पूरनतया परास्त कर अपने वश मे कर लिया | महारावल जी के उमराव बिहारी दासोत तेजमालोत बारोटियों ने सम्मिलित होकर बीकानेर राजा की दागदार सांढिया चार तथा दूसरे देश की सांढ़िया 500 जोड़ से निकाल कर ले आए | उस मुददे से बीकानेर राजा रत्नसिंह की फौज 10 हजार लेकर फौज मुंसाहिब ठाकर बेरिसाल महाजन का सुरानों हुकुमसिंघ मोहतों ,अभयसिंघ तीनों फौज लेकर बड़ोदा गाँव पर व वासन पीर पर संवत 1885 मे युद्ध हुया |जिसमे जैसलमेर के सोढ़ा रामचंद्र व सिराई ,हाजी खान खोसो ,गुल्लमोहमद ,मंगलियों ,खोसो ,मीठू खान ,खोसो कासम खान ,सिकिलधे खान , सिध रावलोत खेतसिंघ ,भाटी जोधसिंघ तेजमालोत ( तेजमालता ) भनकमल समेलसिंघ ,बादर खान बलोच दस आदमी थे | इस युद्ध मे बीकानेर के 700 आदमी मारे गए | ओर जैसलमेर के केवल दो आदमी सोढ़ा रामच्न्द्र व सिराई हाजी खान शहीद हुये ओर खोसो गुलाम खान ओर मोहमद मंगलियों घायल हुये | बीकानेर का सुराना हुकुमसिंघ मारा गया | इसके कारण उदयपुर मे मेहता सालमसिंह के साथ बीकानेर के कुँवर रतनसिंह के बोलचाल हुयी थी उससे फीका पाड़या था | सो फिर शर्मिंदा होकर हार गए | भटियों ने वासन पीर सोयी हुयी बीकानेर की सेना पर अचानक आक्रमण किया था | बीकानेर की फौज हारकर भाग गयी थी | जिनका पीछा करते हुये भाटी वीरों ने अपनी सीमा से बाहर कर दिया | बीकानेर की फौज का नगारा निशाना छीन लिया | इस प्रकार खोसो के नेत्रत्व मे जीत होने पर महरावल अत्यंत प्रसन्न हुये ओर खोसो को गाँव नगराजा जागीर मे संवत 1885 मे दिया ओर बीकानेर की फौज से छीना नगारा भी दिया | यह युद्ध भाटियों व राठोंडों का अंतिम युद्ध था |


इस युद्ध का मैन कारण उदयपुर मे गजसिंघ से झगड़ा मोल लेना था |



:: दोहा ::
मेह न भूले मेदनी रंक भूले न राव
पली भूले न पाडकी बीकाणों भूले न घाव ||


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