199 महारावल मूलराज द्वतीय ( भाटी 60 )१७६१ ई. और क्रूर सलिमसिंह मोहता और ईस्ट इंडिया से संधि दौलतसिंह तेजमालोत भाटी द्वारा

महारावल मूलराज द्वितीय (भाटी 60 ) १७६१ ई

महारावल मूलराज सं. १८१९ वि.१७६२ ई आसोज सुदी १ जैसलमेर के सिंहासन पर बैठे पर बिराजे | इनके रानिया १.चांपावत ठा.सेरसिंह की पुत्री आणंदकंवर २.कोटड़ा के कोटडिया ठा.वीरमदेव की पुत्री फूलकंवर ३.गढ़ बावली के चौहान राणा जयसिंह की पुत्री ४.पोकरण के ठा.सामसिंह की पुत्री फतेह्कंवर ५.जोधा ठा.नथराज की पुत्री लाडूकंवर ६.जसोल के ठा.महेचा इसरदास की पुत्री साहिब कुंवर ७. किसनगढ़ के जोधा बहादुरसिंह की पुत्री रूपकंवर ८.सोढा सुल्तानसिंह की पुत्री मया कंवर 9.चावड़ा ठाकुर रुघनाथसिंह की पुत्री खुमान कंवर १० कोटडिया ठा.दुर्जनसाल की पुत्री सिरेकंवर | इनकी पुत्रिया रामकंवर व् महाकंवर गढ़ रतलाम राजा पदमसिंह को परनायी | इनकर पाटवी पुत्र कुंवर रायसिंह रानी जोधी किसनगढ़ की|  १.रायसिंह २.लालसिंह निसंतान थे | ३.जेतसिंह २.का महासिंह के पुत्र सात थे | १.तेजसिंह का मानसिंह भीमसिंह जी 22.देवीसिंह का उम्मेदसिंह ,अनाड़सिंह खोले गए जोधसिंह के ३.फतेहसिंह ४.गजसिंह पाट बैठा | ५.जोधसिंह ६.केसरसिंह जी के पुत्र रंजीतसिंह गादी बेठा दूजा बेरीसाल जी रणजीत सिंह की गादी बेठा ७.छतरसिंह ठा.सेरसिंह रे गोद ग्राम लाठी बैठा |

महारावल मूलराज के शासन काल में उनके सामंत गणों ने कलह करना समीपवर्ती अन्य राज्यों में लूट खसोट करना शुरू कर दिया था | महारावल की आज्ञा से प्रधानमंत्री स्वरूपसिंह ने उनको दमन करने का प्रयतन किया | जिससे समस्त भाटी गण उनसे रुष्ट हो गए | सामंतों का उपद्रव मचने के खास कारन उनके पास उपजाऊ भूमि न होना था | उस समय चारों और अशांति फेली हुयी थी | और सब तंग आ गए थे | भाटी राज्य के हित चिंतकों को यह आसंका होने लगी की कहीं पास के राजा लोग इस प्राचीन राज्य को हानि न पहुंचाए | इसी करम स्वरूपसिंह प्रबल सामंतो का दमन करने लगे | महारावल मूलराज के बड़े पुत्र रायसिंह से भी स्वरूपसिंह का वैमनष्य हो गया | वे भी स्वेछाचार मंत्री को पदच्युत सामंत गणों से मिल गए | सामंत गणों ने कहा की इस मंत्री ने महारावल को अपने वश में कर रखा है | अतः इसे बगेर मारे यह ये अधिकार से नहीं हटेगा | इस प्रस्ताव से युवराज भी सहमत हो गए | और सं.१८३९ वि .की मकर सक्रांति के दिन महारावल के दरबार में सब उपस्थ्ति हुए | सभा विसर्जन के समय मोकपा सामंतो के इशारे से महारावल के सिंहासन के पास बैठे हुए प्रधान मंत्री स्वरूपसिंह को राजकुमार रायसिंह ने अपनी तलवार से मार डाला | युवराज और सामंत गणों को ऐक मत देख कर महारावल अंतपुर में चले गए | सामंतों ने यह सोचकर की यदि महारावल सिंहासन पर रहे तो सबसे बदला लेंगे | अतः उन्होंने उसी समय युवराज को बिठाना चाहा परन्तु वह सिंहासन पर तो नहीं बैठे | और राज्य भर आपने हाथों में ले लिया | और महारावल को सभा निवास नामक राजप्रसाद में नजर बंद कर दिया | इस गृह कलह के फलस्वरूप और ज्यादा अराजकता फ़ैल गयी | भाटियों के चिर शत्रु बहादुर खां ने भी भाटी राज्य में दीनपुर नामक नवीन दुर्ग बनवा लिया और देरावर प्रदेश भी भाटियों से छीन लिया | ये प्रदेश भावलपुर रियासत में मिला दिया गया | इधर महाराजा जोधपुर ने बाड़मेर ,कोटड़ा शिव आदी समस्त प्रदेशो को अपने अधिकार में कर लिया | इस प्रकार प्राचीन भाटी राज्य की दुरावस्था देखकर जैसलमेर के झिनझिनयाली के अनोपसिंह ये हि महारावल के बंधन का कारन थे ,उनकी पत्नी के हर्द्य में महारावल मूलराज को बंधन मुक्त करने की तीवअभिलाषा उतपन्न हुयी | इसके वीर पुत्र जोरावरसिंह ने अपनी राज्य भक्त माता की अनुमति पाकर उसने रामसिहोत भाटियों की सहायता से महारावल को मुक्त कर दिया | महारावल ने क्रांतिकारी अनोपसिंह के पुत्र जोरावरसिंह को इस तरह अपनी सहायता करते अत्यंत आश्चर्य हुआ | परन्तु वास्तविक रहस्य मालूम होने पर जोरावरसिंह व् उनकी माता का आभार माना इन वीर रामसिहोत सामंतो की सहायता से महारावल ने उसी राज्य अधिकार को अपनेहाथ में ले लिया | सबसे पहले उन्होंने अपने पुत्र रायसिंह को देश नेकाले का दंड दिया और अपने पिर्य स्वरूपसिंह के पुत्र सालमसिंह को अपना मंत्री बनाया | जोरावरसिंह ने भी अपनी राज्य भक्ति द्वारा महारावल के दरबार में पूरा अधिकार कर लिया | सालमसिंह ने ने प्रधानमंत्री का पद प्राप्त अपने पितृ हन्ता से बदला लेना चाहा | परन्तु जोरावरसिंह की उपस्थति में अपने को असफल मनोरथ देख पहले तो उसने जोरावरसिंह को हि उसके छोटे भाई की पत्नी द्वारा विष दिलवाकर मरवाया और उसके उपलक्ष में खेतसिंह को उस जगह दरबार में नियुक्त करवाया फिर खेतसिंह को भी अपने अनुकूल न देखकर उसको भी मरवा दिया | यह समाचार पाकर खेतसिंह की पत्नी ने आत्महत्या कर ली | उधर युवराज निर्वासित होकर कुछ समय तक तो जोधपुर में महाराज विजयसिंह के पास रहे | परन्तु वापस आ गए | महारावल ने युवराज रायसिंह को वापस आया देख | मंत्री सालमसिंह की सलाह से उसको सशत्र हीन कर देवा के किले में सुकुटुम्ब रहने भेज दिया | जहाँ युवराज और उसकी पत्नी अग्निकांड मंत्री के षड्यंत्र द्वारा जल गए | उनके दोनों पुत्र अभयसिंह व् जालमसिंह सोभाग्य से बच गए और जैसलमेर आ गए | प्रधानमंत्री ने यो तो उनके साथ हार्दिक सहानुभूती प्रकट की परन्तु उसके मन में यह आशंका उतपन्न हुयी की इस घटना से दयाद्र हो कर यदि महारावल ने इनको पास रख दिया तो कुछ राज्य अधिकार के दिए तो मेरे शासन में बाधा उतपन्न हो जाएगी | असल में क्रूर सलिम्सिंह जालिम इनका भी काम तमाम करना चाहता था अतः अराजक भाटियों में मिले पहुए प्रमाण कर महारावल द्वारा उन्हें राजधानी से दूर ररामगढ़ नामक दुर्ग भिजवा दिया गया | उसका विचार महारावल के छोटे पुत्र जेतसिंह के पोत्र बालक गजसिंह को राज्य दिलाकर अपने मंत्री पद को अपनी संतान के हाथों तक स्थिर रखना था | क्रूर मंत्री सालमसिंह ने अपने पिता की हत्या में सहायक बारू टेकरा आदी के वीर सामंतो को भी अपनी कूटनीति द्वारा मरवा डाला इस भय से राजपरिवार के समस्त राजकुमार भयभीत होकर जोधपुर बीकानेर आदी पास के राज्यों में अपनी रक्षार्थ चले गये | इस प्रकार कूट नीतिग्य सालमसिंह षड्यंत्रों द्वारा कई राजकुमारों व् सामंत गणों को मरवा निर्भय हो गया | इस और से निश्चिन्त होकर उसने प्रजा पर अत्याचार करना शुरू किया | जिससे तंग आकर महेश्वरी पालीवाल आदी जातियों के समर्धिशाली मनुष्य राज्य छोड़कर विदेशों में जाने लगे | विदेशो में भी जाने वालों की बड़ी दुर्दशा होती थी | वे लोग अपना मॉल भता लेकर वहा से रवाना होते रस्ते में बागी सामंत गण उन्हें रस्ते में लूट लेते | इस प्रकार राज्य में उस समय महान अशांति फेल गयी | परन्तु कुटिल मंत्री तो अपनी स्वार्थ सिद्ध में लगा हुआ है | उधर चारों तरह से पड़ोसी राजाओं ने जैसलमेर के अधीन कई प्रान्तों को अपने अधिकार में कर लिए | इससे राज्य की सीमा जो अत्यंत विस्तृत थी | काफी संकुचित हो गयी | उस समय मुगलों का सूर्य अस्त हो रहा था | इसलिए तमाम भारत में अशांति फ़ैल रही थी | शक्तिशाली राजा निर्बलों पर अपना अधिकार जमा रहे थे | और मनमानी लूट खसोट हो रही थी | महारावल को आखिर अपनी इस अवनति का भार हुआ | अतः उन्होंने अपने राज्य को फिर उन्नत करने का विचार किया | सं.१८२६ में अपनी छीन -छीन भाटी सेना को सुसंगठित कर अपने राज्य को पश्च्मोतर प्रदेश को हडपने वाले यवनों को दमन करने भेजा | यवन सेना के सरदार बहादुर खां के पुत्र अली खां ने यह देख कर अपने अधीन भाटी प्रदेश व् अपने बनवाये हुए दीनगढ़ दुर्ग को मय २५००० रुपये महारावल को भेंट कर संधि कर ली | महारावल ने इस प्रकार इस प्रान्त को पुनः अपने अधिकार में उस दुर्ग का नाम किशन गढ़ रखा | महारावल वहां से अपनी सेना नह्वर गढ़ भेजी यह सेना ५ माह तक दुर्ग को घेरकर लड़ती रही परन्तु उधर उस समय दिल्ली आगरा आदी मुग़ल राजधानियों पर ईस्ट कम्पनी का अधिकार हो चूका था | और राजपुतानों के कई नरेशों ने उनके साथ संधिया कर ली | ब्रिटिश सरकार राजाओं द्वारा आपस में छीने हुए प्रदेशो को अपने असली हकदारों को वापिस दिलवा दिए | यह सुचना मिलने पर महारावल ने सेना नह्वर से वापिस बुलवा कर तुरंत हि ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ संधि करने का विचार कर लिया तदनुसार जैसलमेर राज्य की और से दौलतसिंह भाटी तेजमालोत तथा थानवी मोतीराम पूरण अधिकार से दिल्ली भेजे गए | उन्होंने दिल्ली जाकर तत्कालीन भारत के गवर्नर जनरल मार्किस ऑफ़ हेस्टिगज द्वारा नियुक्त मिस्टर चार्ल्स थियोफ्लिस्मेंट काफ से बातचीत कर संधि कर ली और संधि पत्र तारिख १२ दिसम्बर १८१८ को लिखा गया | महारावल का इस संधि होने के दो वर्ष पश्चात् १८२० में स्वर्गवास हो गया | उनके परलोक वास के अनन्तर क्रूर मंत्री सलिम्सिंह ने अपने मनोनीत युवराज गजसिंह को उतराधिकारी बनाया | महाराज मूलराज ने वि .सं .१८२७ में मंदिर वल्लभकुंड बनवाया | मूलसागर तालाब का निर्माण करवाया | मोहनगढ़ का किला बनवाकर गाँव बसाया | महल बनवाये ,बाग लगवाये ,तलहटी के महल चार बनवाये ,दो महल गढ़ के ऊपर बनवाये सं १८५१ विकर्मी को मोहन गढ़ बसाया | सं १८४९ वि.जोधपुर की फौज अमरकोट पर अपना अधिकार करके वापिस लोटते समय विंजोरायी (फतेहगढ़ ) का नाम फतेहगढ़ रखा | महारावल जी ने फौज ले जाकर सांवरीज लूटी ,खेड़ के महेचा से दंड वसूला | सं . १८२९ वि.में परगना शिव ,कोटड़ा ,ग्राम जोधपुर वालों ने छीन लिया था | सो सं.१८५० वि में महारावल जी ने पुनः उनसे ले लिये | महारावल मूलराज ने सं.१८३१ विक्रमी को शहर के चोगिरद शहर पन्ना की दीवार व् भुर्ज बनवाये |

  क्रूर मंत्री सलिमसिंह जिसकी वजह से 84 गाँव ऐक रात को पालीवालों ने छोड़े

इस समय जैसलमेर के क्रूर मंत्री के सलिमसिंह सिंह के अत्याचारों से सब सामंत गण परेशां थे | ऐक दिन सलिम्सिंह कुलधरा पालीवालों का गाँव जो जैसलमेर से ५ किलोमीटर पड़ता हे वहां गया | अचानक ऐक पालीवाल ब्राहमण की कन्या पर उसकी निगाह पड़ी और मन हि मन चाहने लगा उसने लड़की के पिता को शादी करने के प्रस्ताव भेजा | लेकिन पालीवालों ने ऐक अधेड़ क्रूर सालिमसिंह को अपनी लड़की नहीं देनी चाही इसलिए उसने हुकुम दिया की जितने भी गाँव हे सभी को जैसलमेर सीमा छोड़कर जाना होगा या फिर कान्य ब्याहनी होगी | उसी दिन पालीवालों ने अपनी पंचायत बुलाई और फैसला किया की अपना सत और इज्जत कभी नहीं हारेंगे भले हि गाँव छोड़कर जाना पड़े | उसी पूर्णिमा की रात पालीवालों के 84 गाँव रातों रात अपना घर बार सब छोड़कर जैसलमेर से कहीं दूर जाकर बस गए लेकिन अपना सत नहीं हारा जाते उन गाँवो में श्राप देके गए की यहाँ पर कोई बस नहीं पायेगा वह गाँव अभी भी जैसलमेर में सूने पड़े हे | दिन में पर्यटकों की भरमार होती हे कुलधरा गाँव में रात को कोई नहीं रह पाटा है वहा की शेली और मंदिर देखने लायक हे उस ज़माने के बने मकान अभी तक पड़े हे |

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