:: 195 महारावल बुद्धसिंह (भाटी 56) 1707ई.::
रावल जगतसिंह के स्वर्गवास के बाद वि.सं. 1764 को जैसलमेर के सिंहासन पर बिराजे | ये नाबालिग थे अतः राज्य भार उनके पितृत्व तेजसिंह ने अपने हाथों में लेना चाहा परन्तु कृतकार्य न होने पर उसने बालक महारावल को अपनी ऐक दासी द्वारा विष दिलवा कर मरवा डाला और खुद राजसिंहासन पर बैठ गए |
:: कुंडलिया :
रावल श्री बुद्धसिंह जी बारस को भण बैसाख |
सतरे सो चौसठ समंत बैठे पाद दे लाख |
बैठे पाट दे लाख दान दीनोजस लीनो |
मारियो कुल धर्म महेतो अरजन कावल |
बुद्धसिंह को करी जहर तेजसिंह बैठो |
: 196 महारावल तेजसिंह (भाटी 57) १७२२ ई.::
महारावल तेजसिंह महारावल बुद्धसिंह को अपनी दासी द्वारा विष दिलवा कर मार डाला और स्वयं गादी पर बैठ गए | संवत १७७९ वि.आषाढ़ वदी १० को चूक हुआ था | इस अन्याय से महारावल जसवंतसिंह के लघु भ्राता हरिसिंह सूबे नगर थटे बादशाही नौकरी में थे उन्हें पता चल गया की की जैसलमेर में अजोगता बात हुयी है | इससे वह नाराज हुए | और तेजसिंह को मारने का उपाय सोचते रहे | जैसलमेर के गड़ीसर प्रोळ के बहार गड़सीसर तालाब पर प्रचलित रीति के अनुसार ऐक दिन तेजसिंह को उस तालाब की मिटटी निकालने को गया देख वृद्ध हरिसिंह ने उस पर हमला किया और तेजसिंह को सख्त घायल कर दिया भागता हुए हरिसिंह भी मारा गया और उधर तेजसिंह भी परलोक सिधार गए |
महारावल तेजसिंह के वंशज लवारकी
प्रतापसिंह
नाहरसिंह
भूपतसिंह
मालमसिंह
मानसिंह
सांवतसिंह
जेठमल
हिम्मतसिंह
पीरदान
सूरजमल
१.मनोहरसिंह
२.उम्मेदसिंह
(लवारकी )
:: महारावल सवाईसिंह ( भाटी 58 ) 1722 ई.::
महारावल सवाईसिंह वि.सं. 1799 को जैसलमेर के राजसिंहासन पर बिराजे | इससे उचित अधिकारी अखेसिंह निराश हो कर शत्रुओं के पंजे से निकल छोड़ ग्राम में जाकर शिवदत नामक पुष्टिकर ब्राह्मण के पास रहने लगे | वहां वीर अखेसिंह ने बहुत सेना इकठ्ठी कर ली | और अपने राज्य के सामंतों व् प्रजा वर्ग को कहलाया की न्याय पूर्वक राज्य अधिकारी में हूँ | अतः मेरी तलवार के बल से राज्य प्राप्त करूँगा | जैसलमेर की सब जनता यह चाहती थी सबने उनका साथ दिया | यह देख सवाईसिंह को सहायक अपने साथ लेकर भाग गए |
महारावल बुद्धसिंह |
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भाटीयो का सासन काल