तेजमाल जी और जैसलमेर के महारावल जसवंतसिंह का युद्ध
जैसलमेर के महारावल जसवंतसिंह को किसी चुगलखोर द्वारा कान भर दिए गए की आप का राज्य तेजमाल जी छीन लेंगे | ऐक बार दुर्ग में सभी उपरावों की सभा थी उस समय तेजमाल जी भी मोजूद थे | महारावल ने तेजमाल जी से पूछा क्यूँ रे तेजा तेरी आंख खुलती नहीं तेजमाल जी ने प्रत्युतर दिया की तीनो रियासतें जैसलमेर , बाड़मेर , बीकानेर सम्मिलित हो जाये तो भी खुल नहीं सकती | तेजमाल जी क्रोधित होकर अपनी ढाल व् तलवार लेकर जोधपुर बीकानेर रियासत की सांढीया चुराकर साथ में जैसलमेर महारावल की सांढीया भी चुराकर ऐक व्यक्ति द्वारा जैसलमेर महारावल को संदेसा भेजा | की अब आंख खोलाने का समय है | जोधपुर , बीकानेर के राजाओं ने जैसलमेर के महारावल पर दबाव डाला की आप की रियासत के चोर हमारी रियासतों में चोरी कर गए | उस मॉल को वापिस करो या युद्ध के लिए तेयार हो जाओ | इधर महारावल स्वयं की साढीया चोरी हो गयी | महारावल ने अपनी सेना तेजमाल जी के पीछे लगा दी | सेना ऐसे अवसर की तक में थी की कभी भी तेजमाल जी निशस्त्र मिले तो उनका वध किया जा सकता हे | संयोगवश ऐक दिन तेजमाल जी हाबुर गाँव गए हुए थे | प्रातः शोच आदी से निवृत होने हेतु हाबुर से तीन किलोमीटर गेह तलाई तक चले गए | निशस्त्र थे | किसी गुप्तचर द्वारा सेना को पता चला की आज तेजमाल जी निशस्त्र है | तब सेना ने तेजमाल जी पर आक्रमण कर दिया | तेजमाल जी ने लोटे तथा घोड़े के चोखटे से असंख्य सेनिकों को मोत के घाट उतारा अंत में बुरी तरह घायल होने पर अपने खून के सात पिंड बनाकर अपनी देह पर पानी उड़ेल कर स्वर्ग सिधारे | तेजमाल जी का स्वर्गवास विक्रमी संवत 1763 बैसाख सुदी आठम को 1706 को हुआ |

लगातार ...................
जय श्री कृष्णा