::गोविन्द दास भाटी ::
विक्रमी संवत १६६४ के लगभग मारवाड़ के बिलाड़ापरगने में उचियाड़ा ( उचेरड़ा ) में भाटी माना जी के घर में जन्म हुआ था | माना जी बहुत गरीब व्यक्ति थे | जिस दिन गोयंददास का जन्म हुआ था | उस दिन माता जी को अपने खेत में गढ़ा धन मिला था जिस से उनको विश्वास हो गया की बालक गोविन्ददास उनके लिए व् अपने खुद के लिए भाग्यशाली होंगे | गोविन्द दास में वीरता व् द्रढ़ प्रतिज्ञा होने के लक्षण बाल्यकाल से हि द्रष्टि गोचर होने लगे थे | मारवाड़ नरेश उदयसिंह जी के कुंवर सूरसिंह शिकार खेलते खेलते वहां आ पहुंचे कुंवर सूरसिंह थककर चूर और प्यास से व्याकूल हो रहे थे | उन्होंने गोविन्ददास को पानी पिलाने का आग्रह किया | गोविन्ददास ने उन्हें पानी लाकर पिलाया सूरसिंह ji अच्छे शिकारी थे | शिकार करना उनका शोक था | वे अन्य प्राणियों का शिकार करने के लिए विभिन्न अश्त्रों सश्त्रों से लेस रहते थे | पानी पीने के पश्चात् उन्होंने गोविन्ददास की परीक्षा लेनी चाही सो उन्होंने आपने पास से एक गुलेल देकर कहा | क्या तुम इस गुलेल खरगोस को मार सकते हो | मगर गोविन्ददास के लिए गुलेल से खरगोस को मारना कोई मुश्किल काम नहीं था | उन्होंने तुरंत सूरसिंह को उसी गुलेल से खरगोश को मारकर भेंट किया | इस बहादुरी के कार्य को देखकर कुवर सूरसिंह जी अत्यंत प्रसन्न हुए | वे गोविन्ददास को अपने साथ जोधपुर ले गए | वहां पहुंचकर उन्होंने गोव्निद्दास को अपनी जागीरी का बंदोबस्त करने का कार्य भार शोंप दिया | वहां भी अपनी बुद्धि चातुर्य से गोविन्द दास ने बड़ी योग्यता व् विश्वास पूर्वक कार्य किया | जिससे वे सूरसिंह के वह अतिपिर्य बन गए | राजदरबार में महाराजा व् कुंवर का विस्वाश पात्र बनना किसी भी व्यक्ति के लिए बड़े गर्व की बात है | वही विश्वास महाराजा उदयसिंह जी कुंवर सूरसिंह को गोविन्ददास पर था | वह उनके बहुत चहेते बन गए थे | महाराजा उनको कई आवश्यक कामों के लिए रियासत के बाहर व् दिल्ली बादशाह के दरबार में भेजते थे | एक बार महाराजा उदयसिंह ने गोविन्द दास को दिल्ली भेजा वहां भी उसने कई वीरता पूरण कार्य कर सबको अचंभित कर दिया | जिससे उनकी बादशाह के वजीर से जान पहचान हो गयी | जोधपुर वापस आने पर महाराजा ने उनकी वीरता पर खुश होकर उनको शिवनेका गाँव मांगला उपहार में दे दिया | वे राजा के बाद उसके जिस भी बेटे को राजगादी पर बिठाना चाहता था | वही गादी पर बेठता वह राजा होता था | एक बार ऐक शत्रु ने दिल्ली दरबार के वजीर पर प्राण घटक हमला करना चाहा परन्तु गोविन्ददास ने उस वार को आपने ऊपर ले लिया और वजीर की जान बच गयी | उनकी इस फुर्ती व् वीरता से खुश होकर वजीर ने गोविन्द दास से कहा तुमने मेरी जन बचायी है तुम मुझसे जो चाहो वो मांग लो | गोविन्द दास ने कहा हमारे स्वामी सूरसिंह कई भाइयो से छोटे है किन्तु वे मुझे बहुत प्यारे है इसलिए में एक उनके लिए मारवाड़ का राज्य मांगता हूँ | संवत १६५१ में महाराजा उदयसिंह का देहावसान हो गया तब सूरसिंह पर हि गोविन्ददास की निगाह थी | वह दिल्ली गया और वजीर ने उनसे कहा की तुम सूरसिंह को भद्र ( सिर मुंडवाना) मत होने देना उसने वापस आकर ऐसा हि किया जब बादशाह मातम पुरसी को आये | तो उसने सूरसिंह को अन्य राजकुमारों से योग्य समझा | उसने उसी समय सूरसिंह के नाम मारवाड़ के राज्य का फरमान लिखकर गोविन्ददास को दे दिया | महाराजा सुरसिंह जब गादी बेठे तब उन्होंने भाटी गोविन्ददास को अपना प्रधान मंत्री बनाया | गोविन्ददास जैसे बुद्धिमान और वीर प्रधान मंत्री के सहयोग से महाराजा सूरसिंह का राज्यभार सुचारू रूप से चल रहा था | उनकी ख्याति के साथ गोविन्द दास की भी ख्याति चारों और फ़ैल रही थी | महाराजा सूरसिंह ने संवत १६५२ विक्रमी में गाँव लवेरे के साथ आसोप का भी पट्टा गोविन्द दास के नाम कर दिया | महाराजा सूरसिंह यदा कदा गोविन्ददास के हि भरोसे राज्यकार्य छोड़ दिल्ली चले जाते थे | ऐक बार जहाँगीर ने मारवाड़ राज्य का फरमान सूरसिंह के भाई किशनसिंह के नाम लिख दिया जब फरमान लेकर किशनसिंह के आदमी अ रहे थे | तो गोविन्ददास को किसी कारन पता चल गया | उन्होंने रस्ते में हि आदमियों को रोककर फरमान को फाड़ दिया था | किशनसिंह को जब यह बात मालूम हुयी तो वे बहुत क्रोधित हुए एक बार जहाँगीर अजमेर आया तो जोधपुर नरेश सूरसिंह शिष्टाचार वश उससे मिलने गोविन्ददास के साथ अजमेर आये थे | किशनसिंह भी बादशाह के साथ अजमेर में थे | फरमान फाड़ने की वजह से किशनसिंह गोविन्ददास से नाराज थे हि इसलिए विक्रमी संवत १६७१ की जेठ सुदी आठम को किशना सिंह ने अपने डेरे पर अपने आदमियों द्वारा गोविन्ददास को शोच जाते समय मरवा डाला| गोविन्ददास ने शोच के लिए जो जल का लोटा लिया था | उससे 16 आदमियों को यमपूर पहुँचाने के बाद स्वयं स्वर्ग सिधार गए |
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राजपूती पराकर्म