जेसलमेर 863 वां स्थापना दिवस

त्रिकुट की पहाड़ी पर खड़ा अडिग 863 साल से सोनार दुर्ग युदुवंशी भाटी राजपूतों का अंतिम पड़ाव



863 सालो से अडिग खड़ा  जैसाण दुर्ग भाटियों के इतिहास की स्वर्णिम गौरव गाथा गा रहा है। आज भी यहां कहने को तो कुछ नही है कल्पना करो उस वक्त इस सुनसान रेगिस्तान में पानी महंगा ओर खून सस्ता था । उतर दिशा से आने वाला हर आततायी सबसे पहले उतर भड् किवाड़ पर वार करता था ।की इस दुर्ग ने बहुत कुछ झेला है शाके जोहर फिर भी इस भारत माता की धरा को जांच न आने दी।। आतताइयों का सबसे पहले लोहा लिया तो इसी जैसाण दुर्ग ने आज बड़े गर्व से में सीना तानकर यह कह सकता हु की मेरे पुरखो ने खून का एक एक कतरा इस देश की रक्षा करने में लगाया जोहर ओर शाके किये लेकिन भारत की भूमी को बचाने की पूरी कोसिस की लेकिन वर्तमान लोकतंत्र में मेरी कोन सुनता खेर आज जैसाण का 863 वां जन्म दिवस है आज ही के दिन रावल जैसल ने इस किले की नींव रखी थी इस अवसर पर सभी को ढेरो बधाई और सुभकामनाये।।



हालांकि इतिहास में स्थानीय इतिहासकारों ने ज्यादा महत्व भाटियों के इतिहास को नही दिया ।इसकी वजह कुछ भी रही हो लेकिन इतिहास गवाह हे कितने भी मुगल तुर्क आये गए लेकिन जेसलमेर और भाटियों का ज्यादा कुछ न बिगाड़ सके क्यों कि कहा जाता है कहा जाता हे भाटियों को मरोडा जाता हे लेकिन तोडा नही ।।हमेसा भाटियों ने उतर दिशा से आतताइयों से  लोहा लिया और देश को  सुरक्षित रखने की कोसिस की इसलिए '' उतर भड किवाड़ '' उपाधि भी भाटियों को दी गयी ।



शाका जोहर - इतिहास में शाका जोहर की शुरुआत यदुवंशी भाटियों द्वारा ही की गयी थी इतिहास में यदुवंशियो ने 11 शाके किये हे इससे अनुमान लगा सकते हे की भाटियों का इतिहास कितना गोरवमई था । जेसलमेर में ढाई शाके भाटियों द्वारा किये गये।



भाटी भिड आगे लड़े ,पोढे रण में जाय

माथा दे दे मुळके ,चुके न ओसर काय

जैसलनाम भूपति यदुवंशी इक थाय;

कोई काल रे अंतरे एथ रहसी आय

लुद्र्वा हूँती उगमण पांचे कोसे गाम

उ पाडे मंडज्यो तिण रे अमर नाम

बारे सो बारोतरे सावण मास सुदेर

जैसल थापयो जोरवर महिपत जेसलमेर

लंका ज्यूँ अगणित है घणा थाट रे धेर

रिधू रहीसी भातियां मही पर जेसलमेर

बारे सो बरोतरे कियो जेसल जैसल गिरी

ईसा बरस सोवनमेर मांड्यो मेरावर

सुद सावन बारस १२ मूल नक्षत्र रविवारे

प्रथि में प्रगटयो त्रिकुट गढ़ लंका कारे

तहां छेद न भेद लगे नको ; सुख निवास जादव रहें

पहवीय गढ़ सिणगार ऐ ,देखेय दुर्जन उदहे



यदुवंशीयों के स्वर्णिम काल राजधानी

काशी 900 साल

द्वारिका 500 साल

मथुरा 1050 साल

गजनी 1500 साल

लाहोर 600 साल

हंसार 160 साल

भटनेर 80 साल

मारोट 140 साल

तनोट 40 साल

देरावर 20 साल

लुद्र्वा 180 साल

जैसलमेर 791 साल

इन 5000 सालों में यदुवंशियों ने 49 युद्ध भारत माता को बचाने के लिए लड़े अनगिनत नाम हे योद्धाओं और  क्षत्राणियों के गिनना नामुमकिन हे आजादी से पहले और बाद में कुछ नाम

 गज गजनी बसाई सिद्ध देरावर, विजय राज चुडाला, राव तनुराव, जैसल, शालिवाहन,आलोजि जंज, राव दूदा,जेतसी, पनराज जी गौ भक्त ,पद्मिनी,विश्व प्रसिद्ध रूठी रानी, भटियाणी माता रानी, तेजमाल जी भाटी हीले जट का आतंक खत्म किया ,शहीद पूनम सिंह मरणोपरांत,परमवीर मेजर शैतान सिंह, शहीद जय सिंह  देवड़ा,शहीद गुमान सिंह सभी को नमन धन्य हे धरा जहां ऐसे शूरवीर पैदा हुए ।



आज जेसलमेर स्थापना दिवश 863 साल सभी को फिर ढेरो बधाई

यदुवंशी सुरेन्द्र सिंह भाटी तेजमालता

क्षत्रिय सुरेन्द्रसिंह भाटी तेजमालता

क्षत्रिय सुरेन्द्रसिंह भाटी तेजमालता

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जय श्री कृष्णा ❤

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