विक्रमपुर का दिलचस्प इतिहास

राजपाल के पुत्र जेतुंग के पुत्र रतनसिंह और चाहड़ ने विकमपुर पर अधिकार ८२७-८७० ई . रहा चाहड़ के पुत्र कोला सर और गिरिराज ने गिरिराजसर गाँव बसाया । यदुराव खाटू के खींची राजा ने विकमपुर पर आक्रमण कर जेतुंगो को परास्त किया । दिल्ली के शासक सुलतान बलबन ( १२६६ -१२८६ ) के समय उनके अधीन मुलतान शासकों ने विकमपुर पर आक्रमण करके काला जेतुंग को परास्त किया । महारावल घड्सी राज्य विहीन विकमपुर के किले में ग्यारह वर्ष सन १३१६ ई . तक रहे । सन १३८० ई . में राव रणकदेव ने विकमपुर का किला अपने अधिकार में लिया । १७४९ ई .में केलण से विकमपुर पूगल से टूट कर जैसलमेर में चला गया । गोपा केलण के वंशजों को विकमपुर सोंप कर राव बरसल पूगल चले गए । राव हरा के पोत्र दुर्जन साल ने गोगली भाटी व् गोपा केलणो को वहां से निकाल दिया और १५३५-१५५३ ई . राव बरसिंह ने अपने अधिकार में ले लिया । रणमल और उसके गोपा केलणों ने लगभग १४३० -१५३० तक सो वर्ष राज्य किया मोटे तोर पर ८५० ई . तक पंवारों फिर १२८० ई . तक जेतुंग भाटियों के १३०५-१३१६ तक रावल धड्सी रहे बीच -बीच में लंगा बलोच अन्य राजपूत जातियां या मुसलमान के अधीन रहा । राव हरा ने १५३० ऎ. में खालसा करके पूगल के थानेदार व् हाकम रखे । राव बरसिंह ने १५३५ -५३ ई . में अपने पुत्र दुर्जन साल को प्रेतक बंट में दिया साथ में ८४ गाँव जागीरी में दिए । बरसिंह के पुत्र राव जैसा ने अपने छोटे भाई दुर्जन साल को राव की पदवी दी । विक्रमपुर के राव दुर्जन साल की पुत्रिया पोह्पावती और हरकंवर का विवाह मोटा राजा उदयसिंह से हुआ । दुर्जन साल के १ राव डूंगरसिंह २ बाँकीदास नामक २ पुत्र थे । राजा उदयसिंह के आदमियों ने माडरियार गाँव के पास बाँकीदास को मार दिया । इससे क्रोधित होकर डूंगर सिंह ने उदयसिंह पर हमला कर दिया । इस युद्ध में डूंगर सिंह की विजय प्राप्त हुयी राव डूंगर सिंह के पुत्र १ उदयसिंह २ मनीदास थे । सन १६२५ ई . में समो बलोचो ने पुगल के किले पर हमला किया । इस युद्ध में पूगल के राव आसकरण व् बरसलपुर के राव नेतसिंह शहीद हुए । विकमपुर के राव उदयसिंह ने समो बलोचो को मर गिराया । राव उदयसिंह के पुत्र १ सूरसिंह २ ईसरदास ३ करण ४ रामसिंह ५ अर्जनसिंह ६ कछारू थे । ईसरसिंह को सिढों की जागीरदारी । सूरसिंह और उनका पुत्र बालूसिंह ,प्रथ्विराज और अखेराज दलपतोत से युद्ध में शहीद हुए । राव सूरसिंह के पुत्र १ बालूसिंह २ बिहारीदास ३ मोहनदास ४ दलपतसिंह ५ मूलसिंह ६ परागदास थे । इनकी म्रतियु के पश्चात् तृतीय पुत्र मोहनदास के पुत्र मोहनदास राव बने । मोहनदास के बाद उनके पुत्र जेतसिंह राव बने । जेतसिंह से बिहारीदास ने अपने हक़ का राव पद प्राप्त किया । बिहारीदास के बाद इनके छोटे भाई मोहनदास के पुत्र जेतसिंह राव बने उनके देहांत के बाद उनके पुत्र सुन्दरदास राव बने । सुन्दरदास के बाद उनके पुत्र अचलसिंह राव बने । इनके देहांत के बाद पुत्र कुम्भा गिराजसर से आकर राव बने । राव कुम्भा को १७४९ ई . में जैसलमेर महारावल अखेसिंह ने मार कर खालसे कर दिया । १७६१ ई . तक खालसे रखा सन १७६१ ई . में महारावल अखेसिंह ने लाड खां भाटी के पुत्र सरुपसिंह को विकमपुर का राव बनाया । लाड खां राव सुन्दरदास के पुत्र थे । परन्तु सरुपसिंह ज्यादा दिनों तक राव नहीं रह सके । भूत पूर्व कुम्भा का भाई बाँकीदास इन्हें मार् कर राव बने । कुम्भा व् बाँकीदास अचलसिंह के पुत्र थे राव् बाँकीदास के पश्चात् इनके पुत्र गुमानसिंह १४ राव बने इसके बाद नाहरसिंह १५ राव बने । नाहरसिंह को भूतपूर्व सरुपसिंह के पुत्र शेरसिंह १६ मार कर राव बने । जैसलमेर महारावल मूलराज ने अपनी सेना विकमपुर भेज राव शेरसिंह को १७८१ ई . में मारा और उनके स्थान पर नाहरसिंह के पुत्र जुझारसिंह को राव बनाया । इनके पुत्र अनाड्सिंह राव बने । अनाड़सिंह के छोटे भाई शिवजिसिंह को बज्जू में जागीरी दी । शिवराजसिंह को धोलिया के जेठमाल सिंह ने अपने पिता का वैर लिया । जेठमाल सिंह को रावल रणजीत सिंह ने प्रसन्न हो कर गिरा जसर का आधा भाग पुरस्कार में दिया । सन १८८६ ई . में जैसलमेर महारावल बेरीसालसिंह ( १८६३ -१८९१ ) ने शिव जी सिंह के पुत्र खेतसिंह को विक्रमपुर प्रदान किया । ( २१ ) राव अमरसिंह (२२ ) शेरसिंह ( २३ ) हनुमानसिंह ।

लगातार ............
जय श्री कृष्णा 
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